Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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मुमुक्षुः- कोई बार तो ऐसा लगे कि मानो सहज ख्याल आता हो ऐसा लगे। और कई बार घण्टों तक बैठे हों तो सामान्य स्पष्टता भी नहीं रहती हो, ऐसा भी बनता है।

समाधानः- भिन्न-भिन्न प्रकार-से परिणति कार्य करे। कोई बार सूक्ष्मरूप-से करे, कोई बार स्थूलरूप-से करे। इसलिये उसमें उसका प्रयत्न कोई बार तीव्र हो जाय। सूक्ष्म ग्रहण करे, कोई बार स्थूल (हो जाय), इसलिये उसमें उसे फेरफार होता रहता है।

मुमुक्षुः- .. कार्यमें आपने ऐसा कहा कि विकल्पात्मक भेदज्ञान अन्दरमें ऐसे कार्यरूप हो कि जिसका फल अनुभूतिरूप आये। ऐसी एक स्थिति भी बनती है।

समाधानः- हाँ, ऐसी स्थिति बनती है। उसे सहज धारा हो कि जिसका कार्य निर्विकल्प दशा आवे। अभी उसे, वास्तविक निर्विकल्पताके बाद जो सहज होता है, ऐसा नहीं कह सकते, परन्तु निर्विकल्प दशा पूर्व उसका कारण ऐसा प्रगट होता है।

मुमुक्षुः- उस जातका आप ईशारा करना चाहते हैं कि इस प्रकारका होना चाहिये?

समाधानः- हाँ। ... करते-करते यदि उसे उग्र पुरुषार्थ हो तो उसे यथार्थ कारण प्रगट होनेका बन जाता है। अन्दर-से लगा रहे तो। छोड तो कोई अवकाश नहीं है।

मुमुक्षुः- ... अपनेको देखने-से ऐसा तो लगता है कि पुरुषार्थकी मन्दता है। जितनी उग्रता चाहिये उतनी नहीं है।

समाधानः- अपनेको ख्याल आये।

मुमुक्षुः- .. फिर भी ऐसा लगे कि पुरुषार्थ मन्द है। ऐसा ख्याल आये तो करता रहे।

समाधानः- बाहरमें निवृत्ति हो तो भी अंतरमें करना तो स्वयंको रहता है।

मुमुक्षुः- अब ऐसा लगता है कि थोडा-थोडा भावभासनमें आता जाता है। लेकिन अभी तो बहुत रुचि इत्यादिका पुरुषार्थ बाकी है।

समाधानः- भावभासन होकर उसको टिकाना, उस प्रकारका अभ्यास करना वह बाकी रहता है।

मुमुक्षुः- १७वीं गाथामें आया कि पहले जानना और फिर श्रद्धान करना, वह कैसे जानना? आत्मा तो अरूपी है।

समाधानः- अरूपी जाननेमें आता है। अरूपी है परन्तु कोई अवस्तु नहीं है। वस्तु है इसलिये ज्ञात होती है। ज्ञानको ज्ञान-से जाना जाता है, ज्ञायकको ज्ञान-से जाना जाता है। ज्ञायक अरूपी और ज्ञान भी अरूपी। इसलिये ज्ञायक ज्ञान-से ज्ञात होता है। उसे जाननेके लिये रूपी वस्तुकी जरूरत नहीं पडती। अरूपी अरूपी-से ज्ञआत होता है। ज्ञान अरूपी और ज्ञायक अरूपी है। ज्ञान-से ज्ञायक ज्ञात होता है। उसे