१०२ रूपी वस्तुकी मददकी आवश्यकता नहीं है। बीचमें निमित्त होता है उतना। बाकी स्वयं उसके लक्षण-से जान सकता है। देव-गुरु-शास्त्रका निमित्त होता है, परन्तु उपादान स्वयं तैयार करके जाने तो स्वयं अपनेको ज्ञान द्वारा ज्ञायक ज्ञात होता है।
मुमुक्षुः- विकल्प द्वारा नहीं?
समाधानः- विकल्प-से ज्ञात नहीं होता। विकल्प बीचमें आता है, परन्तु विकल्प- से ज्ञात नहीं होता, ज्ञायक ज्ञान-से ज्ञात होता है।
मुमुक्षुः- सलाह देनेवाला मिथ्यादृष्टि है उसे रागका ही स्वभाव वर्तता है, ज्ञायकका ज्ञान नहीं वर्तता, तो उसका कैसे करना?
समाधानः- नहीं वर्तता है उसे प्रयत्न करके जानना चाहिये। रागका ज्ञान उससे भिन्न होकर, पुरुषार्थ करके स्वयं स्वसन्मुख दिशा बदलनी चाहिये, तो ज्ञात होता है। अनादिका जो अभ्यास है उसमें चला जाता है। अंतरमें देखता नहीं, इसलिये मात्र रागका ज्ञान वर्तता है। स्व तरफ उपयोग करके स्व तरफ मुडना चाहिये, तो ज्ञात हो। उसकी दिशा बदलनी चाहिये, उसे पलटना चाहिये तो ज्ञात हो।
दिशा बदलता नहीं है, एक ही दिशामें चला जाता है। उसे पलटना चाहिये। मार्ग पर चलता हुआ मनुष्य ऊलटी दिशामें चलता हो, वह पलटे तो दूसरी दिशामें मुड सकता है। गुरुदेवने तो बहुत बताया है। कौन-सी दिशा, किस ओर मुडना वह बताया, परन्तु मुडना अपने हाथकी बात है।
मुमुक्षुः- कोई आसान तरीका बताईये न।
समाधानः- वह आसान ही है। आसानमें आसान वह-ज्ञान लक्षण-से आत्माको पहचानना। वह सरल-से सरल है। उसमें बाहरका कुछ करना नहीं होता, या उसमें कुछ बाहर-से कष्ट करना या दूसरा कुछ नहीं आता। तेरे स्वसन्मुख उपयोग करके, सूक्ष्म दृष्टि करके अंतरकी लगनी और महिमा लगाकर तू अंतरमें जा। अंतरमें देख, उसका भेदज्ञान कर कि यह भिन्न है, राग भिन्न और ज्ञान भिन्न है। ऐसा भेदज्ञान कर, अंतर-से न्यारा हो जा, वह सरल-से सरल उपाय है। उसकी लगन लगा, महिमा लगा, वह सब कर। वह सरल उपाय है।
बाहरका सब है वह उसे सरल लगा है। वह तो पर पदार्थ है। उसे अपना करनेके लिये प्रयत्न किया तो भी वह अपने होते नहीं। उस सर्व उपाय निष्फल है। वह उसे सरल लगता है वह दुर्लभ है, और यह अपना सरल है वह उसे दुर्लभ हो गया है।
मुमुक्षुः- ..
समाधानः- जाननेवाला है। ऐसा पूरा जाननेवाला मैं हूँ। जो जाणकतत्त्व है पूरा जानन स्वभाव-से भरा है। जिसमें नहीं जानना ऐसा कुछ नहीं है। ऐसा जाननेवाला