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तत्त्व है वही मैं हूँ। यह जड तत्त्व है और यह जाननेवाला तत्त्व है। वह जाननतत्त्व अनन्त-अनन्त शक्ति-से भरा हुआ, ऐसा जाननतत्त्व मैं हूँ। मात्र वर्तमान जाना उतना नहीं, परन्तु अखण्ड जाननेवाला है वह मैं हूँ। पूर्ण जाननेवाला वह मैं हूँ।
मुमुक्षुः- .. श्रद्धामें नक्की करना ना?
समाधानः- यह मैं ही हूँ, ऐसा श्रद्धा-से, विचार-से नक्की करना। लक्षण पहिचानकर, विचार करके उसकी प्रतीत-श्रद्धा करे कि यही मैं हूँ, अन्य कुछ मैं नहीं हूँ। ऐसे प्रतीत तो स्थूलता-से की, परन्तु अंतर-से जब प्रतीत हो तब उसे अन्दर-से सत्य ग्रहण होता है। पहले बुद्धिपूर्वक विचार करे, फिर अंतर-से विचार करे।
मुमुक्षुः- ऐसा होकर फिर छूट जाता है।
समाधानः- विचारपूर्वक नक्की करे, अभ्यास करे, परन्तु अंतर-से जो होना चाहिये, वह स्वयं पलटे तो होता है।
मुमुक्षुः- उस दिन आपने .. बात कही तो दो-तीन दिन-से..
समाधानः- स्वयं तो भिन्न ही है। अभ्यास करना, छूट जाय तो। अनादिका अभ्यास है इसलिये बारंबार उसमें चला जाता है। छूट जाये तो बारंबार अभ्यास करना। बारंबार उसकी लगनी, महिमा, विचार, बारंबार प्रतीत करनेका अभ्यास बारंबार करना, छूट जाय तो। छूट जाय तो बारंबार करना। थकना नहीं। बारंबार करना।
... आचार्यदेव कहते हैं, अविच्छिन्न धारा-से भानी। केवलज्ञान हो तबतक भेदज्ञानकी धारा ज्ञानदशामें सहजपने चलती है। तो पहले उसका अभ्यास करना। वह अभ्यास छूट जाय तो बारंबार करना।
मुमुक्षुः- थोडे समयमें क्या करना?
समाधानः- सबको एक ही करनेका है। आचार्यदेव कहते हैं न, आबालगोपाल सबको एक ज्ञायक आत्मा पहचानना है।
मुमुक्षुः- हमारी तो बहुत उम्र हो गयी है।
समाधानः- बहुत साल सुना है। बस, वह एक ही करनेका है। एक ज्ञायक आत्माको पहिचानना वही करनेका है। ज्ञायक आत्माको पहिचानना। ज्ञायक जुदा है और शरीर जुदा है। सब भिन्न है। विभाव स्वभाव अपना नहीं है, उससे स्वयं भिन्न है। आत्मा शाश्वत (है)। ये उम्र आदि शरीरको लागू पडता है, आत्माको कुछ लागू नहीं पडता। आत्मा तो शाश्वत है। आत्माको पहिचानना, आत्मा ज्ञायक है।
देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा अंतरमें और अंतरमें शुद्धात्माको पहिचाननेका प्रयत्न करना। सबको एक ही करना है। एक ज्ञायक आत्माको पहिचानना। मैं ज्ञायकदेव भगवान आत्मा हूँ। मेरे आत्मामें ही सर्वस्व है। मैं अदभुत आत्मा, अनुपम आत्मा आनन्द-से भरा,