अमृत वाणी (भाग-६)
१०४ ज्ञान-से भरा, अनन्त प्रभुता-से भरा मैं चैतन्य हूँ। ऐसा अदभुत तत्त्व मैं हूँ। सबको एक ही करना है। मैं ज्ञायक आत्मा जाननेवाला, शाश्वत आत्मा हूँ। शरीरकी कोई भी अवस्था हो, वह मैं नहीं हूँ। मैं उससे भिन्न हूँ। मैं चैतन्य स्वरूप आत्मा शाश्वत हूँ।
प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो! माताजीनी अमृत वाणीनो जय हो!