१०८ या आत्मामें-से कुछ जाता नहीं, मात्र शरीर बदलता है। वर्तमान क्षेत्र-से दूर होता है, इसलिये ऐसा हुआ ऐसा लगे। आत्मा तो वैसाका वैसा है। आत्मामें कुछ हानि नहीं होती। आत्माके कोई गुणोंकी या किसी भी प्रकारकी आत्माकी हानि नहीं होती।
करना अन्दरमें है। अन्दर-से भाव कैसा उग्र हो गया। स्वतंत्र है। सबके परिमाम स्वतंत्र हैैं। ऐसे गुरु मिले और घरमें सब ऐसा वातावरण। नानालालभाई कैसे थे, ऐसा हो। लेकिन प्रत्येक द्रव्य स्वतंत्र हैं। क्या हो? ऐसे भाव हो गये। आयुष्य वैसे ही पूरा होनेवाला था। जैसी अपनी रुचि हो वह अपने साथ आता है। गुरुदेवने उपदेश दिया वह ग्रहण करनेका है।
मुमुक्षुः- तुरन्त यही विकल्प आया कि माताजीके दर्शन करने पहुँच जाते हैं, भगवानके दर्शन करने पहुँच जाते हैं।
समादानः- उपदेशकी जमावट की है। शास्त्रमें आता है कि मेरे गुरुने जो उपदेशकी जमावट की, उसके आगे मुझे सब तुच्छ है। जगतका राज या तीन लोकका राज भी मुझे तुच्छ लगता है। गुरुदेवके उपदेशकी जमावटके आगे चाहे जो भी प्रसंगमें, उस उपदेशके आगे सब गौण है। एक गुरुदेवका उपदेश हृदयमें रखकर, एक ज्ञायक आत्माको मुख्य रखने जैसा है।
समाधानः- ... लक्ष्मणजीने तीर्थंकर गोत्र बाँधा है तो गति अलग-अलग हो गयी। रामचंद्रजी मोक्ष पधारे, लक्ष्मणजी कहाँ गये, सबके परिणाम अनुसार (चले जाते हैं)। लक्ष्मणजी तीर्थंकर होनेवाले हैं। सबके परिणाम (अनुसार सब) इकट्ठे हो, फिर बिछड जाय। सबके परिणाम अनुसार सब बिछडते हैं।
मुमुक्षुः- जिसके बिना एक क्षण जी नहीं पाऊँगा ऐसा था, उसके बिना अनन्त काल बीत गया। उसके सामने नहीं देखूँगा, ऐसा उसका क्रोध था, उसके घर पुत्र बनकर जन्मा।
समाधानः- जिसके बिना एक क्षण जी नहीं पाऊँगा उसके बिना जीवने अनन्त काल व्यतीत किया है।
मुमुक्षुः- जिसका नाम नहीं लूँगा, ऐसा क्रोध था। उसके घर पुत्र बनकर जन्मा।
समाधानः- पुत्र बनकर जन्मता है। ऐसा श्रीमदमें आता है।
मुमुक्षुः- हाँ, श्रीमदमें आता है।
समाधानः- ... स्वयं भिन्न नहीं जानता है। अनादिके भ्रमके कारण एकत्व कर रहा है। उसे भिन्न नहीं करता है। भिन्न करना अपने हाथकी बात है। कितने जन्म- मरण किये हैं। ऐसेमें इस भवमें गुरुदेव मिले, ऐसा उपदेश मिला। गुरुदेवने समाजके बीच, सबके बीच रहकर जो उपदेश दिया है, वह इस पंचमकालके अन्दर क्वचित (ही