Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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बनता है)।

कोई मुनिवर जंगलमें हो। गुरुदेव तो इस पंचमकालका महाभाग्य कि सब मुमुक्षुओंको बरसों तक उपदेश बरसाया है। वह उपदेश मिला है। .. पंचमकालमें गुरुदेवका योग मिल गया। उनकी अपूर्व वाणी.. महापुरुषकी वाणी थोडी (होती है), ये वाणी तो बरसों तक मिली है। कोई बार मिले तो भी महाभाग्यकी बात है। ये तो बरसों तक मिली।

मुमुक्षुः- नयी दृष्टि मिली हो, गुरुदेवका उपेदश किस प्रकार ग्रहण करना? किस प्रकार सुनना? ऐसा लगना।

समाधानः- गुरुदेवने बाह्य दृष्टि छोडकर अंतर दृष्टि करनेको कहा है। बाकी जगतको तू भूल जा और तेरे आत्मामें दृष्टि कर। आत्माको याद कर। आत्मा भिन्न है। आत्माकी दुनिया याद कर। जगतकी दुनिया विस्मृत करने जैसी है। आत्मा कोई अपूर्व है, वह अलौकिक वस्तु है। उसे याद कर, उसकी पहचान कर।

आत्माकी दुनिया कोई अलग है। चैतन्य अनन्त गुण-से भरपूर वस्तु है। सर्वोत्कृष्ट भगवान, गुरु और शास्त्र जगतमें मिलना ही दुर्लभ है। पंचमकालमें मिले और अन्दर आत्मा अपूर्व है उसकी बात गुरुदेवने बतायी। कोई वस्तु अपूर्व नहीं है। अनन्त बार देवलोकमें गया। जगतमें सब पदवी प्राप्त हो गयी है, परन्तु एक आत्माकी पदवी, सम्यग्दर्शनकी पदवी प्राप्त नहीं हुयी। वह अपूर्व है। वह कैसे प्राप्त हो, उसकी भावना करने जैसी है।

जिनवर स्वामी मिले परन्तु स्वयंने पहचाना नहीं। और सम्यग्दर्शन एक दुर्लभ है, वह अपूर्व है। जगतमें वह अपूर्व वस्तु है। बाकी सब जगतमें प्राप्त हो गया है। (अनादि- से स्वयंको) भूलता आया है। उसे भूलकर पुण्य देखकर उसे ऐसा लगता है कि कुछ नया है। वह नया नहीं है। परन्तु आत्मा वस्तु ही नवीन है। ऐसेमें पंचमकालमें गुरुदेव मिले, उनकी वाणी मिली, उनका सान्निध्य मिला। वह कोई महाभाग्यकी बात है कि इस पंचमकालमें ऐसा मिले।

समाधानः- ... मुझे देव-गुरु-शास्त्रके बिना नहीं चलेगा। प्रभु! मैं आपको साथमें रखता हूँ। पंच परमेष्ठी भगवंतोंको मैं साथमें रखता हूँ। आपके बिना नहीं चलेगा। मैं आपको साथमें रखकर पुरुषार्थ करुँगा, मुझ-से करुँगा, लेकिन आपको साथमें रखूँगा। माँ-बापको साथमें रखता है, वैसे पंच परमेष्ठी भगवंत, आप पधारो, मैं आपको साथमें रखता हूँ, आपके बिना नहीं चलेगा।

दीक्षा उत्सवमें सब पधारो। सबको निमंत्रण देते हैं। तीर्थंकरोंको, अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु सब पधारो। सबको मैं निमंत्रण देता हूँ। मैं दीक्षा लेता हूँ, मेरे पुरुषार्थ-से मैं जाता हूँ, परन्तु आप मेरे साथ आओ। आपके बिना नहीं चलेगा।