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उसमें पूरा द्रव्य आ जाता है। द्रव्य पर दृष्टि करनेसे उसमें पारिणामिकभाव समा जाता है।
मुमुक्षुः- पारिणामिकभाव.. दोनों एकार्थ है ऐसा नहीं कह सकते?
समाधानः- एक अर्थ है ऐसा नहीं, परन्तु उस पारिणामिकभावमें द्रव्य ही आ जाता है। पूर्ण द्रव्य उसमें आ जाता है।
मुमुक्षुः- क्षायिक पर्याय अथवा केवलज्ञानकी पर्याय बाहर रह जाती है, तो फिर पीछे द्रव्यकी कोई ..
समाधानः- क्षायिकभाव तो पर्याय है न, द्रव्य तो अनादिअनन्त है। क्षायिकभाव बादमें प्रगट होता है, वह अनादिअनन्त नहीं है। इसलिये उसमें पारिणामिकभाव तो अनादिअनन्त है। इसलिये द्रव्य पर दृष्टि करनेपर उसमें पारिणामिकभाव आ जाता है। उसमें क्षायिकभाव तो सादिअनन्त होता है।
मुमुक्षुः- केवलज्ञानकी पर्याय भी नहीं है।
समाधानः- केवलज्ञानकी पर्याय नहीं है। केवलज्ञानकी शक्ति है।
मुमुक्षुः- शक्ति है?
समाधानः- हाँ, शक्ति है, पर्याय नहीं है। परिणमनरूप पर्याय नहीं है, शक्ति है। सब पारिणामिकभावरूप है। सहज आत्मा सहज ज्ञानस्वरूप है, सहज दर्शनस्वरूप है, सहज चारित्रस्वरूप है। लेकिन वह चारित्र यानी कौन-सा चारित्र? पूर्ण प्रगट चारित्र, वह चारित्र नहीं। सहज चारित्र जो स्वाभाविक सहज शक्तिरूप है, वह सब उसमें आ जाता है। सहज दर्शन, सहज ज्ञान, सहज चारित्र, सहज बलस्वरूप आदि सब सहज है। वह पारिणामिकभावरूप है। पारिणामिकभाव अनादिअनन्त है। उसमें पूर्ण ज्ञायक आ जाता है। द्रव्य पर दृष्टि की उसमें पारिणामिकभाव आ जाता है। पारिणामिकभावको ग्रहण करना अथवा द्रव्यको ग्रहण करना, दोनों एक स्वरूप ही है। छहों द्रव्यमें। परन्तु पारिणामिकभाव अनादिअनन्त है। द्रव्य जैसे अनादिअनन्त है, वैसे पारिणामिकभाव द्रव्यमें अनादिअनन्त है। बाकी उदयभाव आदि सब अपेक्षित है। क्षायिकभाव, उपशमभाव, क्षयोपशमभाव आदि।
मुमुक्षुः- द्रव्यको पारिणामिकभावको कथंचित भेद कह सकते हैं?
समाधानः- गुण-गुणीका भेद कह सकते हैं। कोई अपेक्षासे गुण-गुणी भेद कह सकते हैं।
मुमुक्षुः- पारिणामिकभावको गुण कहते हैं?
समाधानः- पारिणामिकभावको गुण कहते हैं, हाँ, गुण कहते हैं।
मुमुक्षुः- गुणोंका समूह है?