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समाधानः- गुण-गुण कहते हैं। पारिणामिकभाव अनादिअनन्त है, इसलिये गुण है। वह पर्याय नहीं है।
मुमुक्षुः- जब दृष्टि आत्मा पर जाती है, तब आश्रय किया ऐसा कहनेमें आता है। परन्तु केवलज्ञान होने पर आश्रय छूट जाता है?
समाधानः- दृष्टिने आत्माका आश्रय लिया। द्रव्य पर दृष्टि गयी, वह दृष्टि वहाँ शाश्वत सहज हो जाती है। पहले उसे सहज नहीं होता, पुरुषार्थ करके दृष्टि प्रगट की। जो दृष्टि प्रगट हुयी, (वह) दृष्टि शाश्वत रहती है। केवलज्ञान प्रगट होता है तब आश्रय नहीं होता, विकल्पयुक्त आश्रय नहीं होता, केवलज्ञानीको। उसे तो सहज परिणमन होता है। आश्रय छूट गया यानी उसे विकल्प छूट गये। बाकी जो परिणति स्वयंकी ओर मुडी सो मुडी, वह तो शाश्वत है। स्वयंकी ओर मुड गयी, ज्ञायकमें परिणति (गयी), ज्ञायकको लक्ष्यमें लिया, ज्ञायक पर जो दृष्टि थंभ गयी वह सहज है। आश्रय यानी उसे बोझ नहीं है। विकल्पका बोझ छूट गया। दृष्टि तो सहज है। दृष्टि तो सहज सदाके लिये है। दृष्टि, ज्ञान, केवलज्ञान होनेपर ज्ञान पूर्ण हो जाता है।
मुमुक्षुः- केवलज्ञान होनेपर आश्रय छूट नहीं जाता। समाधानः- विकल्प छूट जाते हैं, आश्रय तो... उसने दिशा बदली, दृष्टि बाहर थी, अन्दर गयी। दिशा बदल दी। लक्ष्यमें लिया, आत्माकी ओर परिणति गयी वह सदा रह गयी। अपनी परिणति गयी, स्वयंका आश्रय लिया, विकल्प छूट गये इसलिये निर्विकल्प दशा शाश्वत रह गयी। दृष्टि शाश्वत और ज्ञान जैसा था वैसा पूर्ण निर्मल हो गया। सब शाश्वत परिणतिरूप हो गया। विकल्पकी उपाधि छूट गयी। निरुपाधि सहज हो गया। दर्शन, ज्ञान, चारित्र जो आत्मामें प्रगट हुए वह साधनारूप थे, वह पूर्ण सहजरूप हो गये।