Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 258.

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 1691 of 1906

 

१११
ट्रेक-२५८ (audio) (View topics)

मुमुक्षुः- माताजीके वचनामृतमें गुरुदेवने रसकस-से गुरुदेव स्वयं ही इतने ही रस- से बात करते हो, इस उपदेशकी जमावट (होती है), इतनी नवीनता (लगती है), ऐसे सुनते हों, परन्तु आपके कहनेके बाद सुनते हैं तो बहुत फर्क लगता है। नयी बात ही लगे।

समाधानः- हाँ। गुरुदेव स्वयं शास्त्रकी बात कहते हो, स्वयं भी ऐसा कहते थे।

मुमुक्षुः- शुरूआतमें आपके द्वारा लिखे गये समयसारके प्रवचन है, उसमें पहले पढा था। गुरुदेवका एक वचन आता है।

समाधानः- हमें रुचता है उसका गीत गाते हैं। दूसरेके लिये नहीं। हमको जो रुचता है उसका गीत हम गाते हैं। शास्त्र पढते वक्त गुरुदेव आहाहा..! स्वयं रंग जाते थे। वही शास्त्र हम पढे और गुरुदेव पढे, वह कुछ अलग ही होता है। गुरुदेव स्वयं एकदम रंगमें आकर पढते थे। उनकी स्वयंकी महिमाको मिलाकर जो निकालते थे, उनको जो महिमा आती थी, वह कुछ अलग ही प्रकार-से पढते थे। अपने आप पढें और गुरुदेव पढें, वह कुछ अलग ही प्रकार-से पढते थे।

जीवको देशनालब्धि होती है। जीव अनादिकाल-से जो समझा नहीं है। उसे एक बार जिनेन्द्र देव या गुरु, कोई उसे मिलता है। देशना सुनकर अंतरमें-से देशनालब्धि प्रगट होती है। आत्माका स्वरूप अप्रगटपने भी ग्रहण होता है। वह अपनेआप अनादि काल-से (प्रयत्न करता है)। जो चैतन्य-स्पर्शी वाणी आती है, उस वाणीके साथ उपादानका सम्बन्ध होता है। आत्माको जागृत होनेमें ऐसा उपादान-निमित्तका सम्बन्ध है। पुरुषार्थ भले अपने-से हो, जीव स्वतंत्र पुरुषार्थ करे तो भी निमित्त और उपादानका ऐसा सम्बन्ध है।

चैतन्यकी जो वाणी निकलती है वह अन्दर-से घुलमिलकर, अंतरमें जिसे प्रगट हुआ है, वह प्रगट जिनको हुआ है उनकी वाणी नीकले, उस वाणीकी असर उसके उपादान उपर (होती है)। ऐसा निमित्त-उपादानका सम्बन्ध है। इसलिये गुरुदेवकी चैतन्य- स्पर्शी वाणी आये, वह दूसरेको जागृत होनेमें निमित्त होती है। ऐसा उपादान-निमित्तका सम्बन्ध है।