Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-६)

११६

मुमुक्षुः- मालूम पड जाता होगा कि मुझे सम्यग्ज्ञान होनेवाला है?

समाधानः- सबको मालूम पडे या न पडे। सबको मालूम ही पड जाय ऐसा नहीं है।

मुमुक्षुः- बहुतोंको मालूम पड जाता है?

समाधानः- बहुतोंको मालूम पडे। परिणति एकदम पलट जाय तो मालूम पड जाय। भावना उग्र हो, पुरुषार्थ उग्र हो, एकदम अंतर्मुहूर्तमें पलट जाय तो पहले-से मालूम नहीं भी पडता, किसीको मालूम पडता है, किसीको नहीं पडता है।

मुमुक्षुः- विचार दशा लंबी चली हो तो?

समाधानः- लंबी चली हो तो किसीको मालूम पडता है। सबको मालूम पड जाता है, ऐसा नहीं।

मुमुक्षुः- ज्ञानी होनेके बाद ऐसा मालूम पडे कि अब इस बार निर्विकल्प दशा होगी?

समाधानः- इस बार होगी, ऐसे विकल्प होते ही नहीं। इस वक्त होगी या इस समय होगी (ऐसा विकल्प नहीं होता)। वह स्वयं अंतर परिणतिमें स्वरूप लीनताका प्रयास करता है। काल ऊपर, कब होगी उस पर उसका ध्यान नहीं है। उसे परिणति भिन्न होनेकी, ज्ञाताधाराकी उग्रता होनेकी, उस पर उसकी दृष्टि होती हैै।

निर्विकल्पता कब होगी, वैसी उसकी (दृष्टि) नहीं होती। उस जातका उसको विकल्प नहीं होता। अपनी परिणति भिन्न करता जाता है। भिन्न परिणतिमें उसे सहज धारा उठे तो (निर्विकल्प) होता है।

मुमुक्षुः- विकल्प भले न करे, परन्तु मालूम नहीं पडता होगा कि अब दो दिनमें या चार दिनमें निर्विकल्प दशा होगी?

समाधानः- उस पर उसकी दृष्टि ही नहीं है। उसकी दृष्टि निज चैतन्य पर स्थापित हो गयी है। उसकी परिणति पर ही उसका (ध्यान है)। ध्यान अपनी परिणति, लीनता पर, ज्ञाताधाराकी उग्रता पर है। उसकी ज्ञाताधाराकी उग्रता पर ही (उसका ध्यान है)।

मुमुक्षुः- ज्ञाताधाराकी उग्रता पर ध्यान हो तो सहज निर्विकल्प दशा होती है?

समाधानः- तो सहज होती है।

मुमुक्षुः- इतना दूर है, ऐसा किसके जोर-से कहते थे।

समाधानः- ज्ञायकके जोरमें कहती थी। वह कुछ निश्चित नहीं था, ज्ञायकके जोरमें कहती थी। ज्ञायकके जोर-से ऐसा लगता था कि समीप है। यह परिणति ऐसी है कि आखिर तक पहुँचकर ही छूटकारा करेगी। यह पुरुषार्थकी धारा ऐसी है कि आखिर तक पहुँच जायगी। अपनी उग्रता-से कहती थी। कब होगा, ऐसा कुछ मालूम