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समाधानः- ... पच्चीस साल होनेमें कहाँ देर लगेगी? क्यों अन्दर कुछ होता नहीं? क्यों परिभ्रमणकी थकान लगती नहीं? क्यों कपकपी होती नहीं? ऐसा होता था। अनेक जातका होता था। अन्दरमें जो स्वयंने किया है, वह अपना है, बाकी काल तो चला जा रहा है। देवलोकका सागरोपमका काल भी पूरा हो जाता है, तो इस मनुष्य भवका काल तो क्या हिसाबमें है?
इस पंचमकालमें गुरुदेव मिले और गुरुदेवने जो उपदेशकी जमावट की, वही याद करने जैसा है और उसमें-से ग्रहण करने जैसा है। उपदेश क्या? गुरुदेवने इतना उपदेश बरसाया। जिसे ग्रहण करके अंतरमें जमावट करनी, ऐसा उपदेश दिया है। जैसे भगवानकी दिव्यध्वनिकी वर्षा होती है, वैसे गुरुदेवकी (वाणीकी) वर्षा हुयी है। दोनों वक्त नियमरूप से।
जहाँ गाँव-गाँवमें सौराष्ट्रमें कहीं मन्दिर नहीं था, हर जगह मन्दिर बन गये। शास्त्र उतने प्रकाशित हुए। कितने ही भण्डारमें थे सब बाहर आ गये।
मुमुक्षुः- टेप भर गयी।
समाधानः- टेप भर गयी।
मुमुक्षुः- यहाँ सुनते हैं तो ऐसा लगता है कि मानों गुरुदेव साक्षात विराजते हों ऐसा ही लगता है।
समाधानः- गुरुदेवका यह क्षेत्र, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और टेप सब ऐसा है। वह स्थान और वह टेप यहाँ बजती है वह अलग है, वह स्थान, गुरुदेव जहाँ बैठते थे वह पाट, क्षेत्र आदि सब वह, इसलिये मानों गुरुदेव बोलते हो ऐसा लगे। टेप बोले उसके साथ ....
कैसे समझमें आये, ऐसा विचार आये न। सहज जो अन्दरमें लगता हो वह सहज आता है। कुछ शास्त्रका हो, लेकिन गुरुदेवने शास्त्रोंका अर्थ करनेमें कहाँ कुछ बाकी रखा है। गुरुदेवने बहुत दिया है।
मुमुक्षुः- ... समाधानः- पद्मनंदी जब पढते थे, तब ऐसा ही पढते थे। पद्मनंदीमें जिनेन्द्र भगवानका अधिकार जब आवे, तब ऐसा ही पढते थे। दानका अधिकार आये तब ऐसा पढते। हे जिनेन्द्र! ऐसा कहकर पढते थे। टेपमें आया था न? माता! आपका पुत्र हमारा स्वामी है। माता! जतन करके रखना। ... इन्द्राणी भगवानको लेने आती है, तब वह बात आती थी। हृदय-से बोलते थे। सबका कलेजा काँप ऊठे, ऐसे कहते थे। वह भक्ति अधिकार पढे, दान अधिकार पढे.... (तब ऐसा ही आता था)।