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मुमुक्षुः- नमस्कार मंत्र बोलते हैं या जब ध्यान करते हैं, उस वक्त वास्तवमें तो ऐसा विचार करना चाहिये कि भगवानका स्वरूप कैसा है, उनको मैं नमस्कार करता हूँ? नव नमस्कार मंत्र बोलते समय अथवा ... बोलते समय, एक-दो बार ऐसा ख्याल आता है, बाकी सब तो ऐसे चला जाता है।
समाधानः- शब्द बोल लेता है। शुभभाव-से भगवान... णमो अरहंताणं, भगवानको नमस्कार करता हूँ, सिद्ध भगवानको नमस्कार करता हूँ। परन्तु भगवान कौन और..
मुमुक्षुः- वह सब हर वक्त आना चाहिये?
समाधानः- हर समय आना चाहिये ऐसा नहीं परन्तु विचार-से समझना चाहिये कि भगवान किसे कहते हैं? सिद्ध भगवान, आचार्य भगवान, उपाध्याय भगवान, साधु भगवान। जो साधना करे सो साधु। आचार्य छठवें-सातवें गुणस्थानमें झुलते हैं, सिद्ध भगवानने पूर्ण स्वरूप प्राप्त किया, भगवानने केवलज्ञान प्राप्त किया। उसका स्वरूप तो समझना चाहिये।
हर बार विचार आये ऐसा नहीं, परन्तुु उसका स्वरूप समझमें तो लेना चाहिये न। तो उसे सहजपने ख्याल आवे, णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं यानी भगवान कैसे है, वह सहज उसे ख्यालमें आये कि भगवान ऐसे होते हैैं। ऐसा विचार-से समझा हो तो।
ओघे ओघे नहीं समझकर, विचारपूर्वक समझे कि भगवान किसे कहते हैं। हर बार बोलते समय विचार करता रहे ऐसा नहीं, परन्तु उनका स्वरूप तो स्वयंको समझ लेना चाहिये। हर बार एकदम बोले, परन्तु स्वरूप तो ख्यालमें लेना चाहिये। हर बार विचार करे ऐसा नहीं।
अन्दर पूर्ण स्वरूपमें जम गये हैं। सहज स्वरूपमें लोकालोकको जानने नहीं जाते, सहज ज्ञात हो जाता है। ऐसी कोई ज्ञानकी अपूर्व शक्ति, आत्माकी अपूर्व शक्ति प्रगट हुयी है। भगवानका स्वरूप विचार करके जाने। अनन्त आनन्द, अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, चारित्र अनन्त भगवानको प्रगट हुआ।
(आत्माका स्वरूप) ऐसा भगवानका, भगवानका स्वरूप ऐसा आत्माका स्वरूप