है। सिद्ध भगवान तो पूर्ण हो गये। आचार्य भगवान तो साधना (करते हुए) छठवें- सातवें गुणस्थानमें झुलते हैं, वे सब मुनिराज (हैं)।
... ऐसा कुछ नहीं है। एक जातकी अन्दर भावना है, उस जातकी परिणति, एक जातका अभ्यास होकर अन्दर भावना रहती है स्वयंको कि ...
मुमुक्षुः- .. और पुरुषार्थको कोई सम्बन्ध है?
समाधानः- व्यवहार-से सम्बन्ध कहनेमें आये। ऐसा कहनेमें आये कि पूर्वके संस्कारीको पुरुषार्थ जल्दी उठता है। ऐसे व्यवहार सम्बन्ध कहनेमें आता है। बाकी तो वर्तमान पुरुषार्थ करे तब होता है। बहुतोंको संस्कार हो तो भी पुरुषार्थ तो वर्तमानमें ही करना पडता है। पुरुषार्थ करे तब संस्कारको कारण कहनेमें आता है।
पूर्वमें जो कोई संस्कार डाले हो, उसकी योग्यता पडी हो। फिर वर्तमानमें स्वयं पुरुषार्थ करे तो उसे कारण होता है। पुरुषार्थ न करे तो कारण नहीं होता। वर्तमान पुरुषार्थ तो नया ही करना पडता है।
मुमुक्षुः- संस्कार डालने-से उसे क्या लाभ हुआ? एक जीव संस्कार बोता है और एक जीव संस्कार बोता है, उसमें उसे यदि पुरुषार्थ-से ही प्राप्त होता हो तो...?
समाधानः- संस्कार उसे पुरुषार्थ उत्पन्न होनेका कारण बनता है। वह लाभ है। लेकिन उसे कारण कब कहें? कि कार्य आवे तो। यथार्थ रीत-से अन्दर वह कार्य हो तो कार्य आवे और पुरुषार्थ उत्पन्न हो। परन्तु वह कारण अन्दर यथार्थ होना चाहिये। यथार्थ रीत-से हो तो पुरुषार्थ उत्पन्न होता है, ऐसा सम्बन्ध है।
पुरुषार्थ उत्पन्न हो वह पुरुषार्थ स्वतंत्र है और संस्कार भी स्वतंत्र है। पुरुषार्थ उत्पन्न हो तो उसे कारण कहनेमें आये। उसे कारण बनता है, इसलिये तू संस्कार डाल, (ऐसा कहते हैैं)। वह कहीं पुरुषार्थ उत्पन्न नहीं करवा देता। स्वयं पुरुषार्थ करे तो उसे कारण होता है।
मुमुक्षुः- ऐसा भी आता है कि जोरदार संस्कार पडे होंगे तो इस भवमें कार्य नहीं होगा तो दूसरे भवमें कार्य हुए बिना नहीं रहेगा।
समाधानः- यथार्थ कारण हो तो कार्य आता ही है। ऐसे। कारण कैसा, वह स्वयंको समझना है। कारण यथार्थ हो तो कार्य आता ही है। तो पुरुषार्थ उत्पन्न होगा ही। कारण तेरा यथार्थ होगा तो भविष्यमें पुरुषार्थ उत्पन्न होगा। परन्तु पुरुषार्थ उत्पन्न करनेवालेको ऐसी भावना होनी चाहिये कि मैं पुरुषार्थ उत्पन्न करुँ। मुझे संस्कार होंगे तो पुरुषार्थ उत्पन्न होगा, ऐसी यदि भावना रहती हो तो पुरुषार्थ उत्पन्न नहीं होता। पुरुषार्थ उत्पन्न करनेवालेको तो ऐसा ही होना चाहिये कि मैं पुरुषार्थ करुँ। तो उसे वह कारण बनता है। पुरुषार्थ करनेवालेको तो ऐसी ही भावना रहनी चाहिये कि मैं