Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-६)

१२६ पुरुषार्थ करुँ। मुझे संस्कार होंगे तो अपनेआप उत्पन्न होगा, ऐसी भावना नहीं होनी चाहिये।

उसके संस्कार यथार्थ कारणरूप हों तो उसे पुरुषार्थ उत्पन्न होता ही है। ऐसा एक सम्बन्ध होता है। परन्तु पुरुषार्थ करनेवालेको ऐसा नहीं होना चाहिये कि मुझे संस्कार होंगे तो पुरुषार्थ उत्पन्न होगा। यदि ऐसी भावना हो तो पुरुषार्थ उत्पन्न ही नहीं होता। भावना ऐसी होनी चाहिये कि मैं प्रयत्न करुँ। मैं ऐसा करुँ, ऐसे स्वयंको भावना रहे तो कारण-कार्यका सम्बन्ध होता है। स्वयंको ऐसी भावना होनी चाहिये।

मुमुक्षुः- (इस भवमें) आत्माका अनुभव न हो तो संस्कार लेकर तो जायेंगे। तब ऐसा लगता है कि संस्कार और पुरुषार्थकी एक जात हो, ऐसा लगता है।

समाधानः- एक जात नहीं है। प्रयत्नमें उसे बहुत उलझन होती हो, प्रयत्न चलता नहीं हो.. पहले तो ऐसा होता है कि तू आखिर तक पहुँच जा। ऐसा तेरा प्रयत्न चलता हो तो तू प्रयत्न कर। परन्तु नहीं होता तो तू संस्कार तो डाल। परन्तु संस्कार यानी पुरुषार्थका सब कार्य संस्कारमें आ नहीं जाता।

यदि तू प्रतिक्रमण कर सकता है तो ध्यानमय करना। न कर सके तो श्रद्धा करना। ऐसे। तुझ-से बन सके तो आखिर तक ध्यान करके केवलज्ञान पर्यंत, मुनिदशा और केवलज्ञान प्रगट करना। परन्तु यदि नहीं होता है तो तू श्रद्धा कर, सम्यग्दर्शन प्राप्त कर। परन्तु सम्यग्दर्शन पर्यंत पहुँच न सके तो उसकी रुचि, भावना और संस्कार करना। परन्तु करनेका ध्येय तो, अपना प्रयत्न उत्पन्न हो तो पूरा करना।

आचार्य कहते हैं कि, तुझ-से बन सके तो पूर्ण करना। न बन सके और तुझे उलझन होती हो तो तू इतना तो करना। अंततः तू रुचिका बीज तो ऐसा बोना कि जो रुचि तुझे कारणरूप हो। ऐसी रुचि तो करना, न बन सके तो। उसमें रुचिमें सब आ नहीं जाता। तेरी अन्दर ऐसी गहरी भावना होगी तो भविष्यमें तुझे ऐसी भावना अन्दर-से उत्पन्न होगी और तुझे पुरुषार्थ बननेका (कारण होगा)।

परन्तु वहाँ भी तुझे ऐसा ही होना चाहिये कि मैं पुरुषार्थ करुँ। वहाँ भी ऐसा ही होता है कि भावना उत्पन्न हो तो पुरुषार्थ करुँ, अन्दर जाऊँ। अभी न होता हो तो अभ्यास करना। उसकी दृढता करना। बारंबार उसका घोलन करना। मैं ज्ञायक हूँ। मैं यह नहीं हूँ। ये विभाव मेरा स्वभाव नहीं है। मेरा स्वभाव भिन्न है। बारंबार उसे तू दृढ करना। तेरी दृढता होगी तो तुझे भविष्यमें, अन्दर वह दृढता होगी तो तुझे स्फूरित हो जायगी, तो तुझे पुरुषार्थ होनेका कारण बनेगी। उसमें सब आ नहीं जाता।

मुमुुक्षुः- .. निमित्त रूप-से संस्कारको लेना? समाधानः- निमित्त रूप-से।