Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-६)

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और अनादि कालसे सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं हुआ है। प्रथम सम्यग्दर्शन प्राप्त करे उसमें कोई गुरुका वचन या देवका वचन, वाणी उसे प्राप्त होती है और अंतरमें आत्मा जागृत हो जाता है। अपने उपादानकी तैयारी हो तो वह निमित्त बनते हैं। ऐसा निमित्त- नैमित्तिक सम्बन्ध है। जिनेन्द्र देव अनेक बार मिले हैं, परन्तु स्वयंने पहचाना नहीं।

भगवानकी वाणी मिली, गुरु मिले और अपना उपादान तैयार हो तो उपादान- निमित्तका ऐसा सम्बन्ध है कि स्वयंको अंतरमें ऐसी देशनालब्धि होती है। अनादि- से समझा नहीं, ऐसेमें उसे ऐसे गुरु या देव मिले तब उसकी तैयारी हो। ऐसा उपादान- निमित्तका सम्बन्ध है। पुरुषार्थ अपने-से करता है। परन्तु ऐसा निमित्त उसे मिलता है। ऐसा निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध है। पुरुषार्थ करे अपने-से, परन्तु उसे ऐसा पुण्य बँधता है कि ऐसे जिनेन्द्र देव अथवा गुरु, गुरु-सत्पुरुष मिले वह अन्दर जागृत हो जाता है, ऐसा निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध है। प्रत्येक द्रव्य स्वतंत्र होने पर भी ऐसा निमित्त- नैमित्तिक सम्बन्ध है। उसकी वैसी शुभभावना-से ऐसे गुरुका योग हो जाता है और अपने पुरुषार्थ-से जागृत होता है।

मुमुक्षुः- अनन्त काल हुआ, अनन्त बार भगवानके समवसरणमें गया। जैसे गुरुदेव कहते थे, ऐसा हुआ फिर ऐसा ही कोरा रह गया?

समाधानः- हाँ, भगवानको पहचाना नहीं। भगवान बहुत अच्छे हैं। उनकी वाणीका रहस्य क्या है उसे पहचाना नहीं। भगवान समवसरणमें बैठे हैं, इन्द्र आते हैं, सब बाहर- से देखा।

मुमुक्षुः- अन्दर-से नहीं।

समाधानः- अन्दर-से नहीं। ये भगवान कुछ अलग कहते हैं। उनका आत्मा कुछ अलग है और कुछ अलग स्वरूप बताते हैं, कुछ अपूर्व बताते हैं, ऐसे पहिचाना नहीं। भगवान अंतर चैतन्यमेंं क्या करते हैं? ऐसे अंतर-से भगवानको पहचाना नहीं। बाहर-से भगवान समवसरणमें बैठे हैं, वाणी बरसाते हैं, इन्द्र आते हैं, ऐसे बाहर- से देखा।

भगवान कुछ वीतरागी मार्ग कहते हैं, आत्माकी कोई अपूर्व बात कहते हैं, भगवान आत्मामें स्थिर हो गये हैं, वीतराग दशा प्राप्त की है, जगत-से भिन्न हैं, ऐसा कुछ पहचाना नहीं। मेरा आत्मा.. अन्दर कुछ अलग करनेको कहते हैं, ऐसा कुछ गहरी दृष्टि-से देखा नहीं। इसलिये ऐसे ही वापस आ गया।

मुमुक्षुः- अव्यक्तमें बहुत सूक्ष्म बात करी। चितसामान्यमें चितव्यक्तियाँ अंतरनिमग्न है। भूत, भावि पर्याय अन्दर निमग्न है।

समाधानः- निमग्न है। चितसामान्यके अन्दर, वह चितस्वरूप सामान्य होने पर