Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-२६२

मुमुक्षुः- साधकको दोनों साथमें होते हैं, परन्तु शुरूआतमें थोडा-बहुत मुख्य- गौण रहता होगा कि नहीं?

समाधानः- जो साधककी परिणति है, वह शुरूआतमें रहे ऐसा नहीं, उसका मार्ग ही वह है। द्रव्यदृष्टि-से द्रव्यकी दृष्टि मुख्य रहती है। उसमें जो पुरुषार्थ होता है वह, पर्यायमें मुझे विभाव है, उससे भिन्न होकर और स्वरूपकी परिणति प्रगट करता है। द्रव्यदृष्टिकी अपेक्षा-से उसे गौण रहता है और परिणति अपेक्षा-से उसे कोई बार मुख्य कहते हैं। इस प्रकार मुख्य-गौण कहते हैं। परन्तु द्रव्यदृष्टि तो सदाके लिये उसे मुख्य ही रहती है। लीनताकी भावना करे, मुझे लीन होना है, ऐसी भावना हो, चारित्रकी भावना हो, ऐसे पर्याय अपेक्षा-से उसे मुख्य कहें। परन्तु अन्दर जो दृष्टि है, उस दृष्टिकी अपेक्षा-से कोई मुख्य नहीं होता।

मुमुक्षुः- सुप्रभात-से लेकर केवलज्ञान पर्यंतकी सब बातमें स्वयमेव प्राप्त हुआ। स्वयंभूपना लिया। दूसरेका कुछ थोडा-बहुत अवलम्बन होगा कि नहीं?

समाधानः- नहीं, अन्य किसीका नहीं। एक स्वयंभू आत्माका ही अवलम्बन। स्वयंभू आत्मा स्वयं अपने-से स्वतःसिद्ध है, उसीका अवलम्बन, अन्य किसीका आलम्बन नहीं।

मुमुक्षुः- देव-शास्त्र-गुरु थोडी मददमें-सहायमें (होते होंगे)?

समाधानः- चैतन्यद्रव्यका ही आलम्बन, अन्य किसीका नहीं। शुभभावनामें उसे आलम्बनरूप कहनेमें आता है। देव-गुरु-शास्त्रका शुभभावमें आलम्बन (होता है)। मेरे साथ रहना, मैं मेरे आत्मामें जाता हूँ। क्योंकि मेरी न्यूनता है। इसलिये शुभभाव मुझे आता है तो आप मेरे साथ रहना। मुझे आपका आदर है। मेरे स्वभावका जैसे मुझे आदर है, वैसे मुझे आपका आदर है। इसलिये मेरे साथ रहना। मैं आपका आदर करता हूँ। मैं जहाँ आगे बढूँ वहाँ मुझे साथीदारके हिसाब-से मुझे मददमें देव-गुरु- शास्त्र रहना, ऐसी भावना करे। बाकी आलम्बन द्रव्यका है।

मुमुक्षुः- काम अन्दरमें स्वयंको करना है।

समाधानः- काम स्वयंको करना है। देव-गुरु-शास्त्रके प्रति शुभभावनामें भक्ति उसे पूरी आती है कि मेरे साथ ही रहना। उसे ऐसा नहीं होता कि वह सब बाहरका है, करना तो अन्दरमें है न, ऐसे भाव नहीं आते।

उसे ऐसा भाव होता है कि मैं अन्दर जाऊँ और शुभभाव खडा है, अभी वीतराग नहीं हुआ है, शुभभावनामें आप मेरे साथ रहना। ऐसे भक्तिभाव आता है। गुरुदेव मुझे सहायरूप हो, मुझे उपदेश दे। ऐसी सब भावना होती है। भावना ऐसी होती है। गुरुके प्रताप-से ही मैं आगे बढा, गुरुदेवने ही सब दिया है, इस प्रकार देव-गुरु-शास्त्र पर