Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-२६३

मन्दताके कारण। रुचिकी ऐसी उग्रता करके जो पुरुषार्थ अपनी तरफ मुडना चाहिये, उस पुरुषार्थको स्वयं मोडता नहीं। इसलिये उसमें अटक जाता है।

पुरुषार्थ जो बाहरमें काम करता है, उसे स्वयं पलटता नहीं है। विकल्पमें जो पुरुषार्थ जाता है, उस पुरुषार्थको पलटकर निर्विकल्पताकी पर्यायमें स्वयं पलटता नहीं है। इसलिये उसे वह आनन्द नहीं आता है। वह आनन्द अन्दर चैतन्यमें जाय तो ही वह आनन्द उसमें-से प्रगट होता है। विकल्पमें खडा हो, तबतक आनन्द नहीं आता है। सविकल्प दशामें भेदज्ञानकी धारा प्रगट हो, सम्यग्दर्शन हो, उसे आंशिक शान्ति होती है। परन्तु विकल्पवाली दशामें जो निर्विकल्पताका आनन्द होता है वह आनन्द तो निर्विकल्प दशामें ही होता है।

सम्यग्दृष्टिको भेदज्ञानकी धारा सहज होती है। उसमें आंशिक शान्ति, ज्ञायककी धारा, शान्तिकी दशा होती है। परन्तु अपूर्व आनन्द तो निर्विकल्प दशामें ही होता है। और वह भेदज्ञानकी धारा भी, अभी जो जिज्ञासु है, उसे सहज धारा नहीं है। वह तो अभी अभ्यास करता है। एकत्वबुद्धि है। एकत्वताको तोडे, उसका प्रयास करे। वह एकत्वता तोडनेका पुरुषार्थ नहीं करता है। जितनी एकत्वता विभावके साथ है, क्षण- क्षणमें उसे एकत्वबुद्धि हो रही है, क्षण-क्षणमें, ऐसी उग्रता ज्ञायककी धारा क्षण-क्षणमें प्रगट हो, ऐसा पुरुषार्थ तो नहीं है। वह क्षण ज्यादा है, विकल्पके साथ (एकत्वकी) क्षण तो दिन-रात चलती है, ज्ञायकका अभ्यास तो कोई बार करता है। अतः उसे ज्ञायककी परिणति सहज होनी चाहिये। तो विकल्प टूटकर आनन्द हो। वह तो करता नहीं। मैं ज्ञायक हूँ, ऐसे रुचि करे, महिमा करे, कोई बार अभ्यास करे तो मात्र क्षणभर थोडी देर करे वह उसे सहज नहीं टिकता है और (एकत्वता) तो उसकी टिकी है, वह तो उसे चौबीसों घण्टे चलती है। यह उसे.. तीव्र पुरुषार्थ करके तीव्र पुरुषार्थ करता नहीं है। इसलिये निर्विकल्प दशा होकर जो आनन्द आना चाहिये वह नहीं आता है।

वह जीवन एकत्वतामें एकमेक हो गया है और यह भेदज्ञानका जीवन तो मुश्किल- से अभ्यास करे तो। वह तो है नहीं। इसलिये उसे आनन्द नहीं आता है। भावना रहे, रुचि रहे, महिमा रहे, परन्तु पुरुषार्थकी धारा उस ओर जाती नहीं इसलिये नहीं होता है।

मुमुक्षुः- वह आनन्द कैसा होगा? क्योंकि हमें तो गुरुदेवके प्रति या आपके प्रति भावना आये, अर्पणताका भाव आये तो हमें ऐसा लगता है कि हमें लगता है हमें बहुत आनन्द-अनन्द आया, ऐसा लगता है। फिर आप जो कहते हो वह आनन्द कैसा होगा?

समाधानः- उस आनन्दका किसीके साथ उसका मेल नहीं है। वह बोलनेमें आये