Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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जाननेके खातिर जान लिया। इसलिये उसने सच्चा जाना भी नहीं है। अन्दर जानपना यथार्थ किसे कहें? कि उसे अन्दरसे वैराग्य आना चाहिये कि ये विभाव मुझे आदरणीय नहीं है, मेरा आत्मा आदरणीय है। आत्मा ही महिमावंत है, विभाव महिमावंत नहीं है। यहाँकी महिमा आये और विभावकी ओरसे विरक्ति होती है, और जानपना साथमें होता है कि यह ज्ञान है सो मैं हूँ। इसके सिवा दूसरा मैं नहीं हूँ। ज्ञायक है वही मैं हूँ। ज्ञायकसे अतिरिक्त मुझसे भिन्न है। मेरा स्वभाव उससे भिन्न है। ज्ञान तो मुख्य साथमें ही होता है, लेकिन ज्ञानके साथ वैराग्य और महिमा जुडे होने चाहिये। तो ही उसका ज्ञान साधनाकी ओर काम करता है। यदि उसे विभावसे विरक्ति नहीं आती तो साधनाकी ओर उसका ज्ञान कार्य नहीं करता। मात्र जाननेके लिये जान ले तो।

मुमुक्षुः- सच्चा जानपना ही उसका नाम है कि उसके साथ भक्ति, वैराग्य आदि जुडे हो।

समाधानः- सब जुडा हो तो ही वह सच्चा ज्ञान है। साधनामें ज्ञान काम करे परन्तु उसके साथ वैराग्य और भक्ति जुडी होनी चाहिये। भक्तिमें भी शुभराग देव-गुरु- शास्त्रका, अंतरमें आत्माकी महिमा होनी चाहिये।

मुमुक्षुः- ज्ञायककी भक्ति।

समाधानः- ज्ञायककी भक्ति होनी चाहिये। ज्ञायककी जिसे महिमा आये, ज्ञायककी ही उसे महिमा आती हो। बाहरमें देव-गुरु-शास्त्र जो साधना करके पूर्ण हो गये, उनकी महिमा आती है।

मुमुक्षुः- उसीका नाम ज्ञायककी पहचान और देव-गुरु-शास्त्रकी पहचान ही उसीका नाम कि महिमा सहित ही आये।

समाधानः- महिमा सहित आये तो ही सच्ची पहचान है। मात्र बुद्धिसे पहचाने वह अलग है। अन्दर महिमासे पहचाने तो ही उसने सच्चा पहचाना है।

मुमुक्षुः- ज्ञानीके प्रति भी ऐसा ही होता है कि उनकी सच्ची पहचान तब ही कहें कि सच्ची महिमा उनके प्रति हो।

समाधानः- महिमा भी साथमें ही होनी चाहिये। गुणकी महिमा आनी चाहिये। जो सच्चे मार्ग (पर) साधना प्रगट की है, पूर्ण हुए, उनके गुणकी महिमा आनी चाहिये। तो ही उसने जाना, नहीं तो वह जानपना किस कामका? मात्र जाननेके लिये जानना रह जाता है।

मुमुक्षुः- बहुत अच्छी बात हुयी, पूरी-पूरी महिमा आनी चाहिये। कितनी महिमा आनी चाहिये? कि पूरी-पूरी आनी चाहिये।

समाधानः- उसका अर्थ ऐसा है कि बाहरमें बहुत उल्लास दिखाये, ऐसा अर्थ