१७४ नहीं है। अन्दरसे पूरा आदर आना चाहिये, ज्ञायककी ओर पूरा-पूरा आदर आना चहिये।
मुमुक्षुः- बाहरमें वाणीके साथ अथवा विकल्पके साथ कोई सम्बन्ध नहीं है।
समाधानः- उसके साथ सम्बन्ध नहीं है। पूरा-पूरा आदर आना चाहिये। इतना आदर बस है, ऐसे उसकी मर्यादा नहीं होती। उसका पूरा-पूरा आदर आये तो ही वह आगे बढ सकता है। पूरा-पूरा आदर नहीं जा सकता। ज्ञायकका पूरा आदर आना चाहिये।
मुमुक्षुः- बहुत अच्छा। माताजी! आपके दो शब्द निकलते हैं कि इतने सुन्दर होते हैं कि आनन्द हो जाता है। इतनी अच्छी बात है।
समाधानः- श्रद्धामें तो पूरा-पूरा आदर आना चाहिये। श्रद्धामें पूरा आदर नहीं आता है तो वह आगे नहीं जा सकता।
मुमुक्षुः- अस्तिसे पूरा आदर और नास्तिसे..
समाधानः- पूरा अनादर और पूरा-पूरा आत्माका-ज्ञायकका आदर। उसके सिवा उसे कुछ भी अन्दर रुचता नहीं, कुछ पोसाता नहीं। सर्व प्रकारसे मुझे ज्ञायक ही सर्वस्व है। ऐसा उसे श्रद्धामें आना चाहिये।
मुमुक्षुः- तब अनुभूति होती है, तब आत्मा प्राप्त होता है।
समाधानः- हाँ, तब प्राप्त होता है। श्रद्धाकी अपेक्षासे नौ-नौ कोटिसे विभावको तिलांजलि दी। सर्व प्रकारसे नौ-नौ कोटिसे आत्माका श्रद्धामें आदर होता है। तो ही वह आगे बढता है। चारित्रका अलग और श्रद्धाका... सर्व प्रकारसे आदर यानी उसमें कोटि आ गयी। शास्त्रमें वह भाषा नहीं आती है, लेकिन सर्व प्रकारसे आदर यानी उसका अर्थ यह हुआ कि श्रद्धामें ज्ञायक और आचरणमें ज्ञायक। मुझे हर जगह ज्ञायक ही चाहिये। सर्व प्रकारसे मुझे ज्ञायक चाहिये। शास्त्रमें वह कोटि नहीं आती है, आचरणमें ही आती है।
मुमुक्षुः- ..
समाधानः- ज्ञायक, सबमें ज्ञायक।
मुमुक्षुः- .. तो ज्ञान, विचार करुं तो ज्ञान..
समाधानः- हाँ, सबमें ज्ञायक। सर्व प्रकारसे, आदरमें सर्व प्रकारसे ज्ञायक।
मुमुक्षुः- उत्पाद-व्यय और ध्रुवका स्वरूप नहीं मानकर, मैं अनन्त गुणस्वरूप परमानन्दी ध्रुव हूँ, ऐसी श्रद्धा और दृष्टि करे तो..
समाधानः- नहीं माने तो फर्क है, माने नहीं तो।
मुमुक्षुः- अनन्त गुणस्वरूप माने तो?
समाधानः- अनन्त गुण स्वरूप माने, लेकिन पर्याय उत्पाद-व्ययको माने नहीं