Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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तो उसकी दृष्टिमें फर्क है। ज्ञानमें तो मानना चाहिये न। दृष्टिमें एक ध्रुव आता है, परन्तु उसके ज्ञानमें सब होना चाहिये। वैसी दृष्टि बराबर नहीं है। दृष्टि उसे कहते हैं कि दृष्टि भले द्रव्यको स्वीकारे, परन्तु उसके ज्ञानमें सब होना चाहिये। दृष्टिमें एक ध्रुव पर दृष्टि रखे कि मैं चैतन्यतत्त्व अनादिअनन्त हूँ, उसका अस्तित्व ग्रहण किया। परन्तु उत्पाद-व्यय आदि सब उसके ज्ञानमें आना चाहिये। मात्र इतना स्वीकारे कि मैं परमात्मा हूँ और पर्याय कुछ भी नहीं है, ऐसा ज्ञानमें भी यदि नहीं स्वीकारे तो दृष्टि भी यथार्थ नहीं है। दृष्टि और ज्ञान दोनों साथमें ही रहते हैं। दोनों साथमें हैं। एकदूसरेको साथ देने वाले हैं। उसमें एकान्त हो जाये तो-तो दृष्टि भी जूठी हो जाती है। दृष्टि और ज्ञान साथमें ही रहना चाहिये।

ज्ञान-सम्यकज्ञान और सम्यग्दृष्टि दोनों साथमें रहने चाहिये। ज्ञानमें सबका स्वीकार आये और दृष्टि तो एक पर थँभाकर स्थिर रखता है। इसलिये दृष्टिमें वह गौण होता है। लेकिन वह है ही नहीं और उसे निकाल दे तो दृष्टि सम्यक नहीं होती। वह है ही नहीं, ज्ञानमें भी नहीं है, ऐसा निषेध करे तो उसे दृष्टि सम्यक नहीं है। ज्ञानमें तो साथमें रहना ही चाहिये। दृष्टि और ज्ञान दोनों साथमें ही रहते हैं।

मुमुक्षुः- उत्पाद-व्यय-ध्रुवका ज्ञान दृष्टिको मदद करते हैं?

समाधानः- दोनों एकसाथ एकदूसरेको परस्पर मदद करते हैं। एक जगह जोर देता है कि अनादि वस्तु है। फिर उसका स्वरूप क्या है? स्वरूप जानना वह ज्ञानका कार्य है। ज्ञानका स्वभाव ऐसा है कि सब जाने। और दृष्टिका वह कार्य है कि एक पर दृष्टि स्थिर करता है, अस्तित्वको ग्रहण करती है। दृष्टिका विषय ही ऐसा है कि उसमें भेद नहीं आते। उसका स्वरूप ही ऐसा है। यदि अकेली दृष्टि हो और ज्ञान साथ नहीं हो तो उसे साधकदशा होती नहीं। और मात्र जानता रहे और दृष्टि एक पर स्थिर नहीं करे तो वह साधकदशा नहीं होती। दृष्टि भले मुख्य रहती है, लेकिन यदि ज्ञान साथमें नहीं हो तो भी साधकदशा नहीं होती। और ज्ञान हो परन्तु दृष्टि स्थिर नहीं करे, अस्तित्व पर जोर नहीं दे तो भी साधक दशा नहीं आती। दोनों साथ (होते हैं)।

मुमुक्षुः- ऐसे तो दोनोंमें विरोध है, दृष्टिका अभेद विषय है और ज्ञानका भेद विषय है।

समाधानः- परस्पर विरोध नहीं है। एकदूसरे-एकदूसरेको साथ देने वाले हैं। ज्ञानमें सब आता है। ज्ञानमें सिर्फ भेद नहीं आता है। ज्ञानमें अभेद और भेद दोनों आते हैं। ज्ञानमें दोनों आते हैं, दृष्टिमें एक आता है। ज्ञानमें दोनों आते हैं। लेकिन दृष्टि एक जगह स्थिर रहती है। एकको ग्रहण करके एक पर जोर देती है, एक मुख्य रहनेसे