Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-६)

१५६ ऐसा। परन्तु उसका परिणमन अन्दर भिन्न है।

मुमुक्षुः- इसीलिये अज्ञानीको भ्रम हो जाता है।

समाधानः- इसीलिये अज्ञानीको भ्रम हो जाता है।

मुमुक्षुः- .. उसकी कर्ताबुद्धि छूट जाय, ऐसी यह बात है। अन्यथा ऐसी शंका हो कि इतनी शरीरकी क्रिया (होती है), उसी वक्त समय-समयमें भेदज्ञान चलता होगा?

समाधानः- अंतर दृष्टि-से देख, ऐसा श्रीमदमें आता है न? स्वयंको उस जातका ख्याल नहीं है, स्वयं एकत्वबुद्धिमें परिणमता है। इसलिये देखनेके लिये दृष्टि कहाँ-से लाये? इसलिये उसे ऐसा होता है कि एकत्वबुद्धिमें तो यह मैं करुँ, यह मैं करुँ। वैसा ही वे कहते हैं। उनके अभिप्रायमें क्या फर्क है, उनकी परिणतिमें वह कैसे पकडना? उसको स्वयंको उस जातका अनुभव ही नहीं है कि भिन्नता कैसे रहे? ये सब बोलते हैं, परन्तु अन्दर परिणति भिन्न कैसे रहती है? उस जातका उसे अनुभव नहीं है, इसलिये उसे पकडना मुश्किल पडता है।

मुमुक्षुः- जबतक अनुभव नहीं होता, तबतक धारणाज्ञानमें स्पष्टरूप-से ऐसा विचार किया होता है। फिर भी शंका पडे कि ज्ञानीको ऐसा निरंतर रहता होगा?

समाधानः- हाँ, निरंतर रहता होगा? ऐसा होता है। जैसे उसे एकत्वबुद्धि निरंतर रहती है, अज्ञान दशामें एक क्षण भी खण्ड नहीं पडता। एकत्वबुद्धि, क्षण-क्षणमें जो- जो रागकी धारा, विभावकी धारा, विकल्पकी धारामें एकत्वबुद्धि उसे निरंतर रहती है। उसमें-से वह भिन्न नहीं पडता है, शरीर-से एकत्वबुद्धि-से। कोई भी विकल्पमें एकमेक एकत्वबुद्धि जैसे उसकी रहती है, वैसे ही भेदज्ञानकी परिणति (ज्ञानीकी) रहती है। उसमें उसे खण्ड नहीं पडता। उसमें उसे विभावके साथ एकत्वबुद्धि नहीं होती। जैसे (अज्ञान दशामें) एकत्व रहता है, वैसे ही वह भिन्न रहता है। भिन्न रहने-से जो रागकी परिणति होती है, उससे भिन्न रहता है।

रागमें जो भाव आये, उसमें वह तन्मय नहीं हो जाता। परन्तु अमुक प्रकारके भाव उसे आते हैं, इसलिये वह बोलता है, इसका ऐसा करना, उसका वैरा करना। ऐसा बोले। जो गृहस्थाश्रममें हो वह उस सम्बन्धित बोले और जो देव-गुरु-शास्त्रके प्रसंग हो, उसमें ऐसा बोले, भगवानका ऐसा करो, गुरुका ऐसा करो, ऐसा शास्त्रका करो। ऐसा बोले। इसलिये उसे ऐसा लगता है कि एकत्वपने (बोलते हैं)। परन्तु उनकी एकत्वबुद्धि नहीं है। जैसी उसे रागकी एकत्वबुद्धि चलती है, वैसे उनकी भेदज्ञानकी परिणति भिन्न है। परन्तु बीचमें जो राग आता है, उस रागमें वैसे भाव आते हैं। उस भावके कारण उस प्रकारका बोलना होता है। परन्तु उसी क्षण वह भिन्न रहता है।

मुमुक्षुः- अंतर दृष्टि-से, आपने कहा कि, श्रीमदजीने कहा है कि अंतर दृष्टि-