Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-६)

१५८ बताया। कितनोंके साथ सम्बन्ध करके स्वयं आया, स्वयंको छोडकर कितने ही चले गये और स्वयं किसीको छोडकर आया है। ऐसे जन्म-मरण (किये हैं)। कभी लम्बा आयुष्य, कभी छोटा आयुष्य, ऐसे अनेक जातके जन्म जीवने धारण किये हैं। उसमें यह मनुष्यभव मिला। इस मनुष्यभवके अन्दर एक आत्माकी पहिचान हो वह नवीन है। बाकी जन्म-मरण, जन्म-मरण जगतमें चलते रहते हैं।

राग हो उतना दुःख हो, तो भी बदलकर अन्दरमें समाधान करना वही श्रेयरूप है। उसका दूसरा कोई उपाय नहीं है। संसार ऐसा है, संसारका स्वरूप ऐसा है। जीवने इतने जन्म-मरण किये हैं कि जितने जगतके परमाणु है, उसे स्वयंने ग्रहण करके छोडे हैं। इतने जगतके परमाणुको (ग्रहा है)।

प्रत्येक आकाश प्रदेशमें एक-एक आकाश प्रदेश पर अनन्त बार जन्म-मरण किये। जितने विभावके अध्यवसाय हैं, सब हो गये। उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी कालके जितने समय हैं, उतनी बार स्वयं अनन्त बार जन्म-मरण कर चूका। अनन्त बार निगोदमें गया, अनन्त बार देवलोकके देवके भव किये। नर्कमें अनन्त भव किये, तिर्यंके अनन्त भव, मनुष्यके अनन्त भव किये। इतने भव जीवने किये हैं। उसमें कितनोंके साथ सम्बन्ध जोडा है और छोडा है। जीवको ऐसे अनन्त जन्म-मरण हुए हैं।

उसमें इस पंचम कालमें यह मनुष्यभव मिला, उसमें गुरुदेवकी वाणी मिली और गुरुदेवने जो यह मार्ग बताया, उस मार्गको ग्रहण करना वही उपाय है। वही शान्ति और सुखका उपाय है। इस जीवनमें कुछ अपूर्वता प्रगट हो और भवका अभाव हो, ऐसे संस्कार डले तो वह श्रेयरूप है। बाकी जीवने अनेक जन्म-मरण किये हैं। नटुभाईको बहुत रुचि थी। अंतरमें वह रुचि लेकर गये हैं। आप सबको रुचि है। गुरुदेवने कहा है वही ग्रहण करना है।

जगतमें कुछ अपूर्व नहीं है, कोई पदवी अपूर्व नहीं है। एक सम्यग्दर्शनकी पदवी (प्राप्त नहीं की)। जिनवरस्वामी जीवको मिले हैं, परन्तु उसने पहचाना नहीं है। इसलिये मिले हैं वह नहीं मिलने बराबर है। एक सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं हुआ है। एक वह अपूर्व है। इसलिये उसे प्राप्त करनेके लिये जीवको भेदज्ञान कैसे हो, आत्माकी पहिचान कैसे हो (उसका प्रयत्न करना चाहिये)।

इस जगतमें शाश्वत आत्मा है। यह शरीर भिन्न और आत्मा भिन्न, दोनों भिन्न- भिन्न वस्तु है। आत्मा तो शाश्वत है। एक देह छोडकर दूसरा देह धारण करता है। आत्माका तो कहीं मरण होता नहीं। जन्म-मरण आत्माके नहीं है। नटुभाईका आत्मा तो शाश्वत है। आत्माका मरण नहीं होता, आत्मा तो शाश्वत है। आत्मा भिन्न शाश्वत है, उसे ग्रहण कर लेना। वही सच्चा है।