Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 1751 of 1906

 

१७१
ट्रेक-२६७

मुमुक्षुः- सब गुणोंका दोष है।

समाधानः- सबका दोष है। एक पलटने-से सब पलट जाते हैं। एक सम्यक हो तो सब सम्यक होता है। एक-से अटका है। रुचि मन्द है, पुरुषार्थ मन्द है। उस अपेक्षा-से प्रतीतिमें, ज्ञानमें सबमें क्षति है।

मुमुक्षुः- विकल्प भी सहज है, निर्विकल्प भी सहज है और मैं भी सहज हूँ। तो फिर विकल्पमें दुःख लगना चाहिये, तो सहजमें दुःख लगना चाहिये, उसमें फर्क नहीं पडा?

समाधानः- विकल्प सहज है, मतलब अपने पुरुषार्थकी परिणतिके बिना कोई जबरन करवा नहीं देता। विकल्प सहज है, वह तो अपेक्षा-से है। खुद ऐसा रखे कि विकल्प सहज है, इसलिये अपनेआप जो होनेवाला है वह होता है, तो उसकी पुरुषार्थकी गति अपनी ओर मुडेगी नहीं। जो अटका है वह अपने पुरुषार्थकी गति नहीं है, उस तरफ उसकी विपरीत परिणति जाती है, इसलिये अटका है। विकल्प सहज है, ऐसा यदि रखे, उस एक अपेक्षाको ग्रहण करे और पुरुषार्थकी मन्दताको ग्रहण नहीं करेगा तो वह आगे नहीं बढेगा।

सब कार्यमें अपने पुरुषार्थकी क्षतिको यदि देखेगा तो ही वह पलटेगा, अन्यथा पलटेगा नहीं। ... सहज है। परन्तु विकल्प सहज है, इसलिये अपनेआप होनेवाला होता है, तो-तो फिर अशुभमें-से शुभ भी नहीं होगा। वह कुछ बदल ही नहीं पायेगा। शुभमें-से शुद्ध भी नहीं होगा। जैसे होनेवाला हो, वैसा होगा। वह कोई आत्मार्थीका लक्षण नहीं है।

जहाँ आत्मार्थ है, वहाँ उसे ऐसा ही लगता है कि मेरी मन्दता-से मैं अटका हूँ। मेरी पुरुषार्थकी (क्षति है)। फिर भले ही वह उतनी आकुलता न करे, परन्तु वह समझे कि मेरी अपनी मन्दता-से मैं अटका हूँ। अपनी मन्दता उसके ध्यानमें हो तो पलटना होगा। मन्दता ही ध्यानमें नहीं है और किसी और पर डाले तो उसे बदलनेका अवकाश नहीं है।

मुमुक्षुः- मैं सहज हूँ, ज्ञायक सहज है।

समाधानः- हाँ, ज्ञायक अनादिअनन्त वस्तु सहज है। परन्तु उसकी परिणति पलटनेमें पुरुषार्थका काम है। .. अपेक्षा-से सहज है, परन्तु पुरुषार्थ पलटना अपने हाथकी बात है। जिसे ज्ञायक दशा प्रगट हुई है, जिसे भेदज्ञानकी धारा प्रगट हुयी है, उसे सहज परिणति (है)। जिसे भेदज्ञानकी सहज परिणति प्रगट हुयी है, उसे भी ऐसा रहता है कि मेरे पुरुषार्थकी मन्दता-से, मेरी लीनताकी मन्दता-से मैं चारित्रमें, वीतराग दशामें, छठ्ठी-सातवीं भूमिकामें पहुँचा नहीं हूँ। मेरी अपनी मन्दताके कारण। उसके ज्ञानमें भी