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मुमुक्षुः- दिगंबर केवलज्ञान शक्तिरूप-से स्वीकारते हैं, सत्ता और शक्तिमें क्या अंतर है?
समाधानः- सत्ता अर्थात अग्निकी भाँति अन्दर वैसाका वैसा पडा है। अग्नि अन्दर है, ऊपर-से ढक दी है। वैसे सत्ता-से केवलज्ञान (है), उस (मान्यतामें) केवलज्ञान अन्दर पडा है और ऊपर-से ढक गया है, ऐसा अर्थ है। और शक्ति-से केवलज्ञान अर्थात उसकी परिणति, उसकी परिणतिकी शक्ति कम हो गयी है। उस अर्थमें है।
स्वभाव उसका अखण्ड है। परन्तु अन्दर ढका हुआ, सूर्य पूरा प्रकाशमान है, बादलों- से ढक गया है। ऐसे केवलज्ञान तो अन्दर वैसाका वैसा भरा है, परन्तु ऊपर-से ढकम गया है, ऐसे सत्ता-से केवलज्ञान (मानता है)। दिगंबर ऐसा कहता है, अन्दर पूरा केवलज्ञानका सूर्य परिणति रूप-से वैसाका वैसा पडा है, ऐसे नहीं है। परन्त उसकी शक्ति-स्वभाव- से है। परन्तु उसकी शक्ति परिणतिरूप नहीं है। उसकी शक्ति कम है। पर्यायमें शक्ति कम हो गयी है। जबकि सत्ता अर्थात पर्यायकी परिणति भी वैसीकी वैसी है, ऐसा कहना चाहते हैं।
मुमुक्षुः- वे लोग परिणतिरूप मानते हैं।
समाधानः- हाँ, परिमतिरूप-से सत्ता मानते हैं। परिणतिरूप-से नहीं है, शक्तिरूप- से है। ऐसा अंतर है। स्वभाव है, स्वभावका नाश नहीं हुआ है, परन्तु उसे प्रगट नहीं है। जैसे छोटीपीपरमें चरपराईकी शक्ति है, परन्तु उसे घीसते-घीसते चरपराई प्रगट होती है। वैसे उसकी केवलज्ञानकी शक्ति परिपूर्ण भरी है, परन्तु उसे प्रगट पर्यायरूप नहीं है।
मुमुक्षुः- सत्तारूप नहीं है।
समाधानः- हाँ, शक्तिरूप-से है, सत्तारूप-से नहीं है। अन्दर वैसाका वैसा भरा है अर्थात वेदन मानो प्रगट पडा हो, ऐसा सत्तामें अर्थ होता है। प्रगट पडा हो वैसे। प्रगट नहीं पडा है, शक्तिमें है। सत्ताका अर्थ ऐसा है कि मानों प्रगट कैसे पडा हो। वैसे प्रगट नहीं है।
... होनेकी शक्ति है, परन्तु वह कहीं वृक्षरूप नहीं है। वैसा है। केवलज्ञानकी शक्ति है, परन्तु उसे परिणतिरूप-से प्रगट करे तो वह प्रगट होता है। बीजमें जैसे वृक्ष होनेकी शक्ति है। ... ऊपर ढका हुआ हो, पूरा है।
मुमुक्षुः-
समाधानः- स्वभावको पहिचाने तो हो। श्वेतांबर-दिगंबर... अपना स्वभाव पहिचानना चाहिये।
मुमुक्षुः- स्वभाव तो दिगंबर शास्त्रमें ही यथार्थ बताया है।