Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 269.

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अमृत वाणी (भाग-६)

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ट्रेक-२६९ (audio) (View topics)

समाधानः- .. जिसका अस्तित्व अनादिअनन्त है, वह त्रिकाल वस्तु है।

मुमुक्षुः- वही त्रिकाल वस्तु है?

समाधानः- वही त्रिकाल (वस्तु है)। जो जाननेवालेका अस्तित्व है, वह त्रिकाल वस्तु है। और वह जाननेमात्र नहीं, अनन्त शक्तिओं-से भरा है। असाधारण ज्ञान (गुण) है, इसलिये ज्ञान द्वारा ग्रहण होता है। वह जाननेवाला है अनन्त शक्तियों-से भरा है।

मुमुक्षुः- ... कभी आये तब बहुत आता है।

समाधानः- कोई बार उग्र हो जाय तो सहज ऐसा हो जाय। परन्तु है अभी अभ्यासरूप, सहजरूप नहीं है। कोई बार उसे प्रयत्न कर-करके भी कृत्रिमता-से (करता है), वह तो पुरुषार्थकी गति उस जातकी है न। हानि-वृद्धि, हानि-वृद्धि होती रहती है।

मुमुक्षुः- उस वक्त क्या करना? जब बहुत प्रयत्न करते हैं लानेका, उस वक्त नहीं होता हो तो?

समाधानः- समझना कि कुछ मन्दता है इसलिये (नहीं हो रहा है)। फिर-से भावना उग्र हो जाय तो सहज आवे।

मुमुक्षुः- न आये उस वक्त पढना या ऐसा कुछ करना?

समाधानः- हाँ, वह न आये तो एक जगह उपयोग स्थिर न हो तो वांचनमें उपयोग जोडना, विचारमें जोडना, देव-गुरु-शास्त्रकी महिमामें, इस प्रकार अलग-अलग प्रकार-से उपयोगको जोडना। एक जातका कार्य अंतरमें न हो सके तो अनेक प्रकार- से उपयोगको शुभभावमें जोडे। परन्तु वह समझे कि यह शुभ है। तो भी जबतक अंतरमें शुद्धात्मा प्रगट नहीं हुआ है, तो उसे शुभभाव आये बिना नहीं रहते। इसलिये शुभके कायाको, शुभकी भावनाओंको बदलता रहे। परन्तु ध्येय एक (होना चाहिये कि) मुझे शुद्धात्माकी पहचान कैसे हो? ध्येय तो एक होना चाहिये।

भेदज्ञान हो तो भी शुभभाव तो खडे रहते हैं। परन्तु वह समझता है कि य ह मैं नहीं हूँ। ऐसे भेदज्ञानकी धारा उसे सहज चलती है। एक ही जगह उपयोग टिक नहीं पाता, अतः उपयोगको बदलता रहे। पूरा दिन भेदज्ञान करता हो और कृत्रिम जैसा