Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 270.

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 1772 of 1906

 

अमृत वाणी (भाग-६)

१९२

ट्रेक-२७० (audio) (View topics)

मुमुक्षुः- गुरुदेवको कोई बार प्रवचन देते समय मानोंकी निर्विकल्प दशा हो गयी हो, तो हम जो बाहर प्रवचनमें बैठे हों, उन्हें ख्याल आ सकता है?

समाधानः- आ सके और न भी आ सके, दोनों बात हैं। देखनेवाला चाहिये। अपनी वैसी दृष्टि हो तो मालूम पडे, नहीं तो नहीं।

मुमुक्षुः- ऐसे दिखाव पर-से तो ख्याल न आये न?

समाधानः- अपनी ऐसी देखनेकी शक्ति चाहिये न।

मुमुक्षुः- बाहरमें कुछ ख्याल आ सकता है?

समाधानः- जो देख सके वह देख सकता है, सब नहीं देख सकते। उसकी परीक्षक शक्ति होनी चाहिये।

मुमुक्षुः- बीचमें थोडा समयका अंतर रहता होगा?

समाधानः- पडे, लेकिन बाहर पकडना मुश्किल पडे। एक आदमी कुछ काम करता हो, तो काम करते वक्त उसके विचारोंका परिणमन कहाँ चला जाता है। हाथकी क्रिया कहीं चलती है, तो बाहरका मनुष्य कहीं पकड नहीं सकता कि उसके विचारकी परिणति कहाँ जाती है। एक आदमी किसीके साथ बातचीत करता हो, धीरे-धीरे शान्ति- से करता हो, उसकी परिणति कहाँ जाती हो वह बाहरका मनुष्य पकड नहीं सकता। वह तो स्थूल विभावकी परिणतिमें भी ऐसा होता है। कोई काम करता हो, कुछ करता हो और उसके विचार कहीं चलते हैं और काम कुछ होता हो।

मुमुक्षुः- दृष्टान्त तो बराबर है। उस प्रकार वांचन करते-करते उनके परिणाम हो जाय तो ख्यालमें न आये।

समाधानः- ऐसी परिणति पकडनी मुश्किल है। योगकी क्रियामें कुछ दिखे तो मालूम पडे, नहीं तो पकडना मुश्किल पडे।

मुमुक्षुः- योगकी क्रियामें कुछ फर्क तो पडता होगा।

समाधानः- देखनेवालेकी दृष्टि पर (निर्भर करता) है।

मुमुक्षुः- माताजी! वाणीमें कुछ फेरफार होता है?

समाधानः- वाणीकी सन्धि चलती है।