Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 271.

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अमृत वाणी (भाग-६)

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ट्रेक-२७१ (audio) (View topics)

मुमुक्षुः- ज्ञानीके आश्रयमें रहे हुए जीवको ज्ञानी जरूर समझाते हैं, ऐसा शास्त्रमें आता है। श्रीमदजीने भी लिखा है। कहीं अटकता हो तो। तो हम कहाँ अटके है?

समाधानः- वह अटकता है अपने पुरुषार्थकी मन्दता-से। अपनी तैयारी हो तो स्वयं समझे बिना रहता ही नहीं। गुरुदेवने कितने उपदेशकी धारा बरसायी है। निरंतर स्पष्ट कर-करके दिया है। कहीं भूल न रहे इतना समझाया है। परन्तु अपने पुरुषार्थकी मन्दताके कारण अटका है, दूसरा कोई कारण नहीं है। अपनी मन्दता (है)। गुरुदेव कहते थे, "निज नयननी आळसे निरख्या नहीं हरिने'। अपने नयनकी आलसके कारण स्वयं अन्दर देखता नहीं है। अपना ही कारण है। सुने, विचार करे, वांचन करे, परन्तु अंतरमें देखता नहीं है वह अपना कारण है। अपनी आलस है।

मुमुक्षुः- ज्ञानी सम्बन्धित आता है कि ज्ञानीको आसक्ति है, परन्तु रुचि नहीं है। तो आसक्ति और रुचिमें क्या फर्क है? हमें भी आसक्ति नहीं हो सकती?

समाधानः- ज्ञानीको रुचि नहीं है, परन्तु आसक्ति है, ऐसा आता है न?

मुमुक्षुः- हाँ, वह आता है। कलके शीलपाहुडमें आया था।

समाधानः- रुचि नहीं है, रुचि उठ गयी है। भेदज्ञानकी धारा प्रगट हो गयी है। रुचि परपदार्थकी सर्व प्रकार-से उठ गयी है। चैतन्य तरफकी परिणति एकदम प्रगट हो गयी है। परन्तु आसक्ति (है)। अभी उसे उतनी वीतराग दशा नहीं है, इसलिये अमुक जातका रागका, द्वेषका परिणाम उत्पन्न होता है। रुचि छूट गयी है। रुचि कैसी? सम्यग्दर्शनकी भूमिकाकी रुचि नहीं, ये तो सम्यग्दर्शनमें जिसे रुचि कहते हैं, सम्यग्दर्शनके साथ रुचि-प्रतीति कहनेमें आती है, ऐसी रुचि उसे सम्यग्दर्शनमें पलट गयी है। अतः मात्र आसक्ति है।

जिज्ञासुकी भूमिकामें अभी उसे रुचि जो यथार्थ रूपसे, जो सम्यग्दर्शनमें रुचि-प्रतीति होती है, वैसी नहीं है, उसे जिज्ञासाकी रुचि है। उसे तो रुचि एवं आसक्ति दोनों खडे हैं। इसे तो रुचि पलट गयी है। आसक्ति मात्र खडी है। जिज्ञासुकी भूमिकामें रुचि, आसक्ति दोनों है। वह मन्दता करता रहता है। उसकी भावना करता है, अभ्यास करता है।