Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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२०१
ट्रेक-२७१

मुमुक्षुः- मन्दता है या विपरीतता गिननी?

समाधानः- मन्दता कहनेमें आती है। गुरुदेवने बहुत समझाया है, स्वयंने विचार किया है। मन्दता है। आचार्य, गुरुदेव उपदेशमें कहे कि इतना उपदेश देनेके बाद भी तू जागृत नहीं हो रहा है, तेरी कितनी विपरीतता है। ऐसा उपदेशमें कहे। उपदेशमें ऐसा आये। उपदेशमें ऐसा कहे, उपदेशमें ऐसा आये। अपनी मन्दताके कारण स्वयं अटका है।

इतना गुरुदेवका उपदेश, आचार्य इतना कहे फिर भी तू उसीमें पडा है, यह तेरी कितनी विपरीतता है। विपरीतताका अर्थ यह कि तेरी कितनी मन्दता है कि तू जागृत नहीं हो रहा है। उसकी प्रतीति-रुचि-जूठी है, ऐसा उसका अर्थ नहीं है। मन्दता है।

सम्यग्दृष्टिको आसक्ति कहनेमें आती है, परन्तु उसे अनन्त टूट गया है। अनन्त संसारकी जो एकत्वबुद्धि, अनन्तता टूट गयी है। अब अल्प रहा है उसे आसक्ति मात्र कहनेमें आता है। उसे वास्तवमें कुछ आदरने योग्य नहीं है। उसे श्रद्धामें-से तो सब निकल गया है। करना, करवाना, अनुमोदन सब श्रद्धामें-से छूट गया है। उसे किसी भी प्रकारकी आसक्ति उसकी श्रद्धामें नहीं है। विभावका उसने नौ-नौ कोटि-से त्याग किया है कि ये आदरने योग्य नहीं है, अनुमोदन करने योग्य नहीं है, उसमें जुडने योग्य नहीं है, कुछ नहीं है। उतनी उसकी जोरदार प्रतीति ज्ञायकधाराकी है कि उसे सब कुछ छूट गया है। अनन्त-अनन्त रस उसका टूट गया है। उसकी श्रद्धामें उतना बल है कि उसका त्याग किया है। उसकी दृष्टि, पूरी दिशा स्वरूप तरफ चली गयी है। स्वयंको हो निहारता है। अल्प पर ओर जाता है तो दृष्टि अपनी ओर चली गयी है। लेकिन अभी उसमें खडा है इसलिये उसे उतनी अस्थिरताकी आसक्ति है। एकत्वबुद्धिकी आसक्ति नहीं है, वह टूट गयी है।

श्रद्धामें-से उसका पूरा परिणमन चक्र चैतन्य स्वभाव तरफ चला गया है। विभाव तरफ उसकी परिणतिका चक्र था वह स्वभाव ओर चला गया है। अभी अल्प अस्थिरता है। उसके अमुक जो भव होते हैं, उसकी अस्थिरताकी परिणति (है)। अनन्त रस टूट गया। अनन्त भवका जो था वह अनन्तता टूट गयी है।

मुमुक्षुः- तीव्रता करनेके लिये क्या करना?

समाधानः- तीव्रता करनेके लिये स्वयंको ही करना है। अपनी जरूरत अपनेको लगे कि मुझे मेरे स्वभावकी जरूरत है। ये कोई जरूरत नहीं है, ये सब जरूरत बिनाका है। अपनी जरूरत लगे कि मुझे मेरे स्वभावकी जरूरत है। और मुझे स्वभाव चाहिये। उसकी जरूरत है। उसमें ही सब भरा है। उसकी यदि जरूरत लगे तो उसकी तीव्रत हो।

ऐसे मनुष्य भवमें ऐसे गुरुदेव मिले, इसलिये तुझे पलटा करके ही छूटकारा है। इस तरह अपनी जरूरत लगे तो उसकी रुचिकी तीव्रता हो। एकत्वबुद्धि नहीं टूटती