Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-६)

२०२ है। उसे तोडनेका अभ्यास करे। बारंबार-बारंबार वह करे तो स्वयं जागृत हुए बिना रहता ही नहीं; उसका अभ्यास करे तो।

बालक हो वह चलना सीखे, ऐसा करे, वैसा करे। बालक भी ऐसा करता है। वैसे बारंबार वह समझपूर्वक अभ्यास करे कि मैं ज्ञायक हूँ। वह तो बालक है, समझता नहीं है। वैसे अपनी ओर स्वयं बार-बार अभ्यास करे कि ये कुछ नहीं चाहिये। गुरुदेवने कहा कि तू चैतन्य है, उस चैतन्यको पहिचान, उसमें तू लीन हो। वही करने जैसा है। बारंबार उसकी जरूरत लगे तो वह करता ही रहे। उसमें-से उसका फल आये बिना रहता ही नहीं, यदि यथार्थ अभ्यास करे तो।

मुमुक्षुः- ... गुफा तक जाना हो तो सवारी काम आये, फिर उसे छोडकर अन्दर जाना पडता है। वैसे धारणाज्ञानको छोडकर अन्दर कैसे कूदना?

समाधानः- वह अभ्यास करता रहे। उसकी परिणतिका पलटा स्वयं ही खाती है। स्वयं अभ्यास करता है।

मुमुक्षुः- कभी लगता है, सामान्य मेंढकको सम्यग्दर्शन हो जाता है। तो वह कैसी बुद्धि है?

समाधानः- उसकी परिणति उतनी जोरदार शुरू होती है कि अंतर्मुहूर्तमें पलट जाती है। अंतर्मुहूर्तमें उतना उग्र प्रयत्न, उग्र परिणति ऐसी होती है कि एक अंतर्मुहूर्तमें पलट जाय। और किसीको अभ्यास करते-करते पलटती है। चैतन्यका चक्र, पूरी दिशा जो पर ओर थी, उसकी पूरी दिशा अंतर्मुहूर्तमें पलट जाती है। उपयोग अभी थोडा बाहर जाता है, परन्तु क्षणभरके लिये तो उसे निर्विकल्प दशामें पूरा चक्र अपनी तरफ पलट जाता है। वह चैतन्यकी ऐसी कोई अदभुत शक्ति है। अचिंत्य चैतन्यदेव ही ऐसा है कि पलटे तो अपने-से अंतर्मुहूर्तमें पलट जाता है। और न पलटे तो अनन्त काल व्यतीत हो जाता है। ऐसा है।

मुमुक्षुः- शास्त्रका अभ्यास, सत्संग, वैराग्य इत्यादि साधक किस प्रकार-से? और बाधक किस प्रकार-से?

समाधानः- गुरुदेवने बहुत समझाया है। गुरुदेवने तो मार्ग बताया है। वस्तु स्वरूप क्या है? साधक क्या? बाधक क्या? सब बताया है। परन्तु वह साधक तो जबतक अंतरमें स्वरूपको समझता नहीं है, अंतरमें स्थिर नहीं होता है, इसलिये वह बीचमें आता है। बाकी वह ऐसा माने कि ये सब सर्वस्व है और इसीमें धर्म है, ऐसा माने तो, सर्वस्व माने तो वह नुकसानकर्ता है।

बाकी ऐसा माने कि ये तो राग है। वह राग कहीं आत्माका स्वरूप नहीं है। आत्मा तो उससे जुदा और अत्यंत भिन्न है। आत्मा तो वीतरागस्वरूप है। श्रद्धा तो