Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 273.

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 1795 of 1906

 

२१५
ट्रेक-२७३ (audio) (View topics)

समाधानः- गुरुदेव तो अनेक प्रकार-से सब स्पष्ट करके कहते थे। मुक्तिका मार्ग गुरुदेवने कोई अपूर्व रीत-से सबको समझाया है और उनकी वाणी अपूर्व थी। कितनों जीवोंको तैयार कर दिये हैं।

मुमुक्षुः- गुरुदेव-से लाभ हुआ तो फिर एकत्व हो गया।

समाधानः- गुरुदेव-से लाभ हुआ उसमें एकत्व नहीं होता है। एकत्व परिणति एकत्व दृष्टि हो तो होता है, ऐसे एकत्व नहीं होता है। भेदज्ञानपूर्वककी परिणति हो वहाँ एकत्व होता ही नहीं। एकत्वबुद्धि हो वहाँ एकत्व होता है। गुरुदेव-से लाभ हुआ ऐसा माने इसलिये उसकी एकत्व परिणति नहीं है। वह बोले ऐसा और वह कहे भी ऐसा कि गुरुदेव-से लाभ हुआ, गुरुदेव आप-से लाभ हुआ, आपने ही सब किया, आप-से ही सब प्राप्त किया है, ऐसा कहे।

मुमुक्षुः- शब्द एक ही हों, फिर भी दृष्टिमें फर्क होने-से अभिप्रायमें फर्क है।

समाधानः- दृष्टिमें फर्क होने-से पूरा फर्क है। एकत्वबुद्धि-से कहे और भेदज्ञान- से कहे उसमें फर्क है।

मुमुक्षुः- एकत्वबुद्धिवाले-से भी ज्यादा विनय करे।

समाधानः- हाँ, ज्यादा विनय करे, ज्यादा विनय करे।

मुमुक्षुः- भाषामें तो अनन्त तीर्थंकरों-से अधिक है, ऐसा कहे।

समाधानः- हाँ, आपने यहाँ जन्म नहीं धारण किया होता तो हम जैसोंका क्या होता? ऐसा कहे। ज्यादा विनय करे। क्योंकि अंतरमें स्वयंको जो स्वभाव प्रगट हुआ है, उस स्वभावकी उसे इतनी महिमा है कि जो स्वभाव जिसने प्रगट किया और समझाया, उस पर उसे महिमा आती है। अंतरमें जो शुभभाव वर्तता है, उसके साथ भेदज्ञान वर्तता है और शुभ भावनामें जो आता है, उसमें उसे उछाला आता है कि मेरी परिणति प्रगट करनेमें गुरुदेवने ऐसा उपदेश देकर जो गुरुदेव मौजूद थे, उन पर उसे उछाला आता है। अतः दूसरे-से ज्यादा उत्साह आकर भक्ति आती है। उसका ऐसा दिखे कि दूसरे-से कितनी (भक्ति है)। बाहर-से ऐसा लगे मानों एकत्वबुद्धि-से करता हो ऐसा दिखे। परन्तु शुभभावनामें उसे भेदज्ञान वर्तता है, उस शुभभावों-से और शुभभावमें जो