२१६ उसे उछाला आता है, वह अलग प्रकारका आता है।
मुमुक्षुः- कितना विचित्र लगे। अन्दर उसी भाव-से भेदज्ञान करता है।
समाधानः- अन्दर उसी भाव-से भेदज्ञान है और उस भावमें उछाला ऐसा है कि मानों गुरुदेवने ही सब कर दिया, ऐसा बोले। और ऐसी भावना उसे होती है। जूठ नहीं बोलते हैं, भाव आता है। उसके साथ भेदज्ञान है और उछाला ऐसा आता है।
मुमुक्षुः- दोनों एकसाथ है।
समाधानः- दोनों एकसाथ है। भिन्नता होने पर भी उछाला ऐसा आता है, मानों दूसरे-से उसकी भक्ति ज्यादा हो। इसलिये शास्त्रोंमें आता है न कि उस शुभभावनामें उसकी स्थिति कम पडती है, रस ज्यादा होता है।
मुमुक्षुः- ज्ञानीको सब मंजूरी दी गयी है। अज्ञानी वही शब्द बोले तो कहे तेरी एकताबुद्धि है।
मुमुक्षुः- मुफ्त है? भेदज्ञान चलता है।
मुमुक्षुः- फावाभाई कहते थे कि आप सम्यग्दृष्टिका पक्ष करते हो।
समाधानः- एकत्वबुद्धि है उसे कहते हैं।
मुमुक्षुः- भक्ति और भेदज्ञान दोनोंका मेल होता है, ऐसा है?
समाधानः- हाँ, दोनोंका मेल है। भेदज्ञानके साथ भक्तिका मेल है। और स्वभावकी महिमा जहाँ आयी है, स्वभावकी परिणति (हुयी है), शाश्वत आत्मा, उसकी स्वानुभूति, उसकी महिमा आयी। वह पूरा अन्दर स्थिर नहीं हो सकता है, इसलिये बाहर जो शुभभावना आये, उस भावमें उसके सामने जो जिनेन्द्र देव, गुरु और शास्त्र, जो साधक और पूर्ण हो गये, उन पर (भाव आता है कि) अहो! ऐसी पूर्णता, ऐसी साधक दशाको देखकर उसे एकदम उल्लास और उछाला आता है। और जिन्होंने उपदेश दिया और उपकार किया, उन पर एकदम उछाला आता है। भेदज्ञान और भक्ति दोनों साथमें होते हैं।
मुमुक्षुः- दो विषय कहे-एक तो पूर्णता देखी और एक तो जिन्होंने उपकार किया। उन दोनों पर उछाला आता है।
समाधानः- दोनों पर उछाला आता है। साधक दशा, उपकार किया, उपदेश दिया और पूर्णता, उन सब पर। और शास्त्र जो सब दर्शाते हैं, उन सब पर उछाला आता है। जितने साधकके और पूर्णताके बाहर जितने साधन हो, उन सब पर उसे उल्लास आता है। फिर भी उसी क्षण भेदज्ञान वर्तता है। दोनों परिणति भिन्न-भिन्न काम करती है। ज्ञायककी और शुभभाव दोनों परिणति।
मुमुक्षुः- पहले प्रश्नके जवाबमें आपने ऐसा कहा कि पर्याय बीचमें आती है।