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बीचमें आती है उसका अर्थ क्या? प्रगट पर्यायको ज्ञानमें जानता है और उस पर- से ज्ञायकको ग्रहण करता है, ऐसा आपको कहना है? पर्याय बीचमें आती है माने क्या?
समाधानः- बीचमें पर्याय द्रव्यको ग्रहण करती है। द्रव्यको ग्रहण करनेमें पर्याय साथमें होती है। सीधा द्रव्य ग्रहण नहीं होता। ग्रहण करनेमें पर्याय साथमें होती है।
मुमुक्षुः- द्रव्यको ग्रहण करनेमें पर्याय साथमें होती है।
समाधानः- पर्याय साथमें होती है।
मुमुक्षुः- और पर्याय ग्रहण करती है।
समाधानः- हाँ, पर्याय द्रव्यको ग्रहण करती है। द्रव्यको ग्रहण करे अर्थात वह सम्यक पर्याय प्रगट हुयी। पर्याय होती है। तो ही उसने द्रव्यको ग्रहण किया कहा जाय। यदि उसे सम्यक पर्याय प्रगट हो तो।
अनादि-से द्रव्य तो है, परन्तु उसने ग्रहण नहीं किया है। स्वयं उस रूप प्रगटरूप- से परिणमा नहीं है। द्रव्य तो अनादि-से स्वभावरूप है, परन्तु उसने उस रूप परिणति प्रगट नहीं की है। इसलिये पर्याय उसे ग्रहण करती है और पर्याय उस रूप प्रगटरूप- से परिणमती है। इसलिये पर्याय साथमें होती है। पर्याय उसके साथ प्रगट होती है, सम्यक रूप-से।
मुमुक्षुः- पर्याय सम्यक रूप-से साथमें प्रगट होती है, इसलिये पर्याय बीचमें होती है।
समाधानः- पर्याय बीचमें होती है।
समाधानः- .. प्रत्येक विजयमें तीर्थंकर भगवान विराजते हैं, अच्छे कालमें। वर्तमानमें वीस विहरमान भगवान विराजते हैं। जब चारों ओर तीर्थंकर होते हैं, जितने विजय है, विदेहक्षेत्रके ३२ विजय हैं। सबमें एक-एक विजयमें तीर्थंकर भगवान विराजते हैं। उतने तीर्थंकर विराजते हैं।
मुमुक्षुः- ... लाखों, उसकी संख्याका तो पार नहीं है।
समाधानः- वह तो संख्यातीत है। अच्छे कालमें तो केवलज्ञानीका समूह, मुनिओंका समूह (होता है)। वर्तमानमें महाविदेह क्षेत्रमें भगवान विराजते हैं। केवलज्ञानीका समूह, मुनिओंका समूह, सब समूह है। विदेहक्षेत्रमें तो चतुर्थ काल वर्तता है। श्रावक, श्राविकाएँ, सम्यग्दृष्टि अनेक होते हैं। यहाँ तो भावलिंगी मुनि दिखना मुश्किल है। सम्यग्दृष्टिकी भी दुर्लभता है। इस भरतक्षेत्रमें तो ऐसा पंचमकालमें हो गया है।
मुमुक्षुः- ऐरावतमें भी लगभग ऐसा ही होगा?
समाधानः- ऐरावतमें भी ऐसा ही है। जैसा भरतमें, वैसा ऐरावतमें। दोनों आमनेसामने है। सदा चतुर्थ काल, मोक्ष और केवलज्ञान सदा रहता है। भावलिंगी मुनि, सब ज्ञान चतुर्थ कालमें महाविदेह क्षेत्रमें सब है। वहाँ कितना है और यहाँ उसमें-से कुछ भी