१८० थे कि मैं वैसे नहीं रह पाऊँगा। मैं तो कुन्दकुन्दाचार्यका मार्ग प्रवर्तन करुँगा, ऐसे नहीं रह पाऊँगा। वनेचंद सेठ वांकानेरके थे, उन्होंने कहा, हमारे आश्रममें-श्रीमदके आश्रममें (रहीए)। मात्र श्रीमदका ही नहीं, मैं तो कुन्दकुन्दाचार्यका मार्ग प्रकाशित कर सकता हूँ। बहुत विचार करनेके बाद गुरुदेवने छोडा। कितने ही भक्त तो मानते थे कि गुरुदेव जो कहते हैं वह बराबर है। कुछ बहनें, कुछ भाईओं।
पहले यहाँ सोनगढमें तो बहुत लोग नहीं थे। हमेशा रहने वाले बहुत थोडे थे। इसलिये हीराभाईके बंगलेमें (नक्की किया)। हजारोंकी जनसंख्याके बीच व्याख्यान देते थे। कहते थे, यहाँ तो अपने आत्माका करना है। बीच वाला होल था, उसमें पढते थे। एक लाईन भाईओंकी, एक लाईन बहनोंकी। बहनोंकी कुछ डेढ लाईन होती थी। उतने लोग शुरूआतमें थे। फिर धीरे-धीरे बढने लगे। प्रथम चातुर्मासमें ही बोटादसे बहुत लोग आये। फिर धीरे-धीरे बढते गये। फिर हमेशा रहने वाले तो कम थे। उस कमरेमें..
मुमुक्षुः- धीरे-धीरे बोलिये, लगातार मत बोलिये।
समाधानः- फिर लोग बढे तो हीराभाईके दालानमें पढते थे। उतनें समा जाते थे। उतनेमें गुरुदेव कहते थे, यहाँ शांति है। वहाँ सब शास्त्र बहुत पढते थे। लेकिन स्थानकवासीके अखबारमें तो बहुत आता था। मुहपत्तिका परिवर्तन किया, स्थानकवासी संप्रदाय छोडा, कितना कुछ अखबर तो आता ही रहता था।
मुमुक्षुः- गुरुदेव चारित्राश्रममें रहे थे?
समाधानः- चारित्राश्रममें नहीं रहे हैं। वहाँ नहीं रहे। वहाँ तो गुरुदेवको निमंत्रण दे, ऐसा कोई महावीर जयंति आदिका प्रसंग हो तो उस वक्त गुरुदेवको निमंत्रण दे कि वहाँ पधारे, इसलिये गुरुदेव वहाँ जाते थे। बाकी वहाँ रहे नहीं है। उनका कोई भक्ति आदिका कार्यक्रम होता था, तब निमंत्रण देते थे। इसलिये गुरुदेव वहाँ जाते थे। बाकी वहाँ रहे नहीं।
मुमुक्षुः- वहाँ प्रवचन देते थे?
समाधानः- गुरुकुलमें। .. कि हजारोंकी जनसंख्यामें जो सिंह दहाडता था, वह सोनगढके छोटे एकान्त स्थानमें बैठे-बैठे स्वाध्याय करते थे।
मुमुक्षुः- अंतरकी कितनी निस्पृहता! बाहरमें इतना सन्मान हो, लेकिन मुझे मेरे आत्माका करना है, इस एक ही (ध्येय) पर पूरा..
समाधानः- पूरा फेरफार कर दिया। बाहर कुछ और अन्दर कुछ, ऐसा नहीं। छोड दिया।
मुमुक्षुः- स्थानकवासी वाले कहते थे कि, आप वह शास्त्र पढिये।
समाधानः- हाँ, स्थानकवासी वालोंने बहुत कहा, उनको राजकोटमें मालूम पडा,