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प्राणजीवन मास्तरने कहा, यहाँ हमारे संप्रदायमें रहीये। आपको जो पढना हो वह पढिये। आपको बंगला देते हैं, आप उसमें रहीए। गुरुदेव कहते, नहीं, मुझे नहीं चाहिये। हमारे स्थानकवासी संप्रदायको धक्का लगता है कि, यह गलत है। आपको जो करना है वह करीये। मुझे ऐसा नहीं करना। (किसीकी) निंदा नहीं, राग नहीं।
फिर तो शुरूआतमें कितने ही समय तक गुरुदेवने विहार नहीं किया। फिर विहार करे तो विरोध (करे)। पहले एक बार विरोध नहीं, लेकिन (संवत) १९९९की सालमें तो बहुत विरोध हुआ। हरएक गाँवमें गुरुदेवके भक्त आ जाते थे, जहाँ स्वागत होने वाला हो। चारों ओरसे आ जाते थे। उतना विरोध। एक पुनमचंदजी महाराज थे, वह साथ-साथ रहते थे और गुरुदेव। गुरुदेव जहाँ आहार लेने जाये, वहाँ दूसरी गलीमें वे आहार लेने जाये। गुरुदेवके साथ भक्तोंका झुंड और स्वागतमें एक ओर उनका स्वागत और एक ओर ये स्वागत। उतना विरोध था। परंतु गुरुदेवका तो ऊँचा ही था। उनके स्वागतमें बहुत लोग आते थे। आहार लेने पधारे उस समय भी उतने ही लोग। उनके साथ खास कोई नहीं था, परन्तु प्रत्येक गाँवमें आते थे, जहाँ गुरुदेव जाए वहाँ आते थे। साथ-साथ व्याख्यान रखे। लेकिन स्थानकवासीका विरोध मर्यादित था। मर्यादा छोडकर विरोध नहीं किया।
मुमुक्षुः- बहिनश्री! गुरुदेवका द्रव्य तीर्थंकर द्रव्य है, ऐसा उसी समय आपको भनक लग गयी थी? ख्याल आ गया था?
समाधानः- उस वक्त तो.. जबतक ख्यालमें नहीं था, तबतक कुछ नहीं। गुरुदेव बाहर नहीं बोलते थे कि, मुझे हृदयमें ऐसा आता है कि मैं तीर्थंकर होने वाला हूँ। गुरुदेव भी नहीं बोलते थे। गुरुदेव संप्रदायमें थे। और यहाँ हीराभाईके बंगलेमें आकर स्वयं बाहर कुछ नहीं बोलते थे। मुझे कुछ मालूम नहीं था कि गुरुदेव ऐसा कुछ कहते हैं। और मुझे स्वयंको ऐसा लगता था कि कोई महापुरुष है। ऐसा होता था, लेकिन यह तीर्थंकर द्रव्य है, ऐसा उस वक्त नहीं आया था। लेकिन आत्मामें लीनता करते हैं, ऐसा लगता था कि गुरुदेवको कहीं देखा है। ऐसा होता था। गुरुदेव तीर्थंकर होने वाले हैं, ऐसा नहीं आया था। गुरुदेवको कहीं देखा है, ऐसा होता था।
सुरत थे तब हिंमतभाईको कहती थी, मैंने गुरुदेवको कहीं देखा है। कहाँ देखा है, कुछ मालूम नहीं था। तीर्थंकरका नहीं आया था। वह तो जब अन्दर आया तब एकदम आया, ये तीर्थंकर होने वाले हैं। ऐसा एकदम कैसे आये? ये तो महापुरुष हैं, ऐसा लगता था। समवसरण आदि, स्थानकवासीमें समवसरण कैसा मानते हैं? तीन गढ मानते हैैं, ऐसा सब मानते हैं। उस वक्त शुरूआतमें तो तत्त्वके शास्त्र पढते थे। कोई पुराण आदि नहीं पढा था। समवसरणमें ऐसे वृक्ष होते हैं या ऐसा होता है,