१८२ ऐसा कुछ पढ नहीं था। वह सब तो अन्दरसे आया है।
(संवत) १९९३-९४में तो शास्त्र ही पढते थे। समयसार, प्रवचनसार आदि पढते थे। पुराण उस वक्त नहीं पढे थे, बादमें सब पढे। गुरुदेव तीर्थंकर होने वाले हैं, ऐसा गुरुदेव कहते भी नहीं थे। मुझे आया तब मैंने गुरुदेवको कहा। मुझे ऐसा लगता था कि मैं गुरुदेवको कहती हूँ तो गुरुदेवको क्या लगेगा? मुझे कुछ मालूम नहीं था कि गुरुदेव मानते हैं। मुझे मालूम नहीं था।
मुमुक्षुः- बादमें गुरुदेवने स्पष्ट किया कि मुझे..
समाधानः- बादमें स्पष्ट कहा, गुरुदेव स्वयंका हृदय कहते हैं, मुझे कुछ मालूम नहीं था। गुरुदेव तो विचार करके माने, मुझे ऐसा कहते-कहते डर लगता था कि गुरुदेव क्या कहेंगे, आप मुझे ये क्या कहते हो? गुरुदेव मान लेंगे, ऐसा नहीं था। गुरुदेवको तो अंतरसे आया था इसलिये गुरुदेवको तो एकदम प्रमोद हुआ।
मुमुक्षुः- उनको आभास होता था, उसकी दृढता हो गयी, जब आपने बात की तब।
समाधानः- बहुत समयसे, मैं तीर्थंकर हूँ, (ऐसा लगता है)।
मुमुक्षुः- उस वक्त ही साथमें समवसरणकी रचना आदिका ख्याल आया?
समाधानः- सब साथमें आया। बहुत कहती नहीं हूँ, थोडा कहा है।
मुमुक्षुः- आजका मंगल दिन है। आपके मुखसे जितना सुनना मिलता है, वह सब आश्चर्यकारी लगता है।
समाधानः- गुरुदेव तीर्थंकर होने वाले हैं, उसका मुझे स्वयंको आश्चर्य लगा कि मुझे ये क्या आया? मुझे भी मालूम नहीं था।
मुमुक्षुः- गुरुदेवको कैसा प्रमोद आया होगा।
समाधानः- तीर्थंकर भगवानका नाम आये ... उनका स्वयंका हृदय बोलता था। प्रवचनमें आ जाये, त्रिलोकीनाथने टीका लगाया, ऐसा बोलते थे। ये तो महाभाग्यकी बात है, ऐसा बोलते थे। त्रिलोकीनाथने टीका लगाया, इससे विशेष क्या चाहिये? गुरुदेवको प्रमोद आ गया था।
मुमुक्षुः- हम लोगोंको सुननेसे कितना प्रमोद आता है। आपने कहा इसलिये गुरुदेवको लगा, त्रिलोकीनाथने टीका लगाया।
समाधानः- वह तो अस्पष्ट बोलते थे, किसीको समझमें आये ऐसे नहीं बोलते थे। गुरुदेव जाहिर नहीं करते थे।
मुमुक्षुः- आपने जो ख्याल आया, इसलिये ऐसा लगा कि ऐसा भाव हुआ। मुमुक्षुः- गुरुदेवके दीक्षा लेनेके बाद दो साल बाद कुछ प्रतिभास हुआ था?