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समाधानः- उनको स्वप्न आया था। ऐसा कहते थे, इस क्षेत्रका शरीर नहीं, शरीर अलग (था), ऐसा कहते थे। राजकुमारका। स्पष्ट स्वप्न आया था। राजकुमारका वेष था और मैं राजकुमार हूँ।
मुमुक्षुः- वहाँ राजकुमार थे, इसलिये मुद्रा भी ...
समाधानः- मुझे यह भी मालूम नहीं था कि गुरुदेवको स्वप्न आया है, ये मुझे नहीं मालूम नहीं था। सब गुरुदेवने बादमें कहा।
मुमुक्षुः- मेल खा गया। वहाँ राजकुमार थे तो वहाँ भी मुद्रा प्रतिभाशाली होगी न?
समाधानः- वह तो वैसी ही होगी न। गुरुदेव तीर्थंकरका द्रव्य, राजकुमार और ऊपरसे तीर्थंकरका द्रव्य, इसलिये प्रतापशाली ही होगी न। जल्दी स्वीकारे नहीं। स्वयं तो कितना विचार करके तत्त्वका निर्णय करते थे, मार्गका कितना विचार करके उन्होंने निर्णय किया। कोई कहे इसलिये मान जाये ऐसे नहीं थे। स्वयंको अंतरसे लगे तो माने।
मुमुक्षुः- गुरुदेवकी प्रकृतिमें वह बात नहीं थी कि किसीका मान ले।
समाधानः- मान ले ऐसे थे ही नहीं। कितने निस्पृह थे, किसीका माने क्या? अंतरसे आये तो ही माने।
मुमुक्षुः- आपने भी कब कहा, कि आपको भी जब पक्का भरोसा होनेके बाद ही आपने कहा।
समाधानः- कितना पक्का हो तो ही बाहरमें बोल सकते हैं। गुरुदेवके पास कहना वह कोई जैसी-तैसी बात नहीं थी।
मुमुक्षुः- और यह भी कोई साधारण बात नहीं थी। बोले तो भी ऐसा लगे ये क्या बोलते हैं?
समाधानः- गुरुदेवको कहूँ कैसे? गुरुदेव कहीं ऐसा कहेंगे कि, आप बहुत महिमा करते हो। ऐसा कहेंगे तो? ऐसा होता था। गुरुदेवको कहना वह तो... कितनी उतनी शक्ति और महापुरुष। बोलते समय ऐसा लगे कि गुरुदेवको कहना यानी क्या! कितना पक्का हो तभी कह सकते हैं।
मुमुक्षुः- बात अटल हो तो ही आप करो न, नहीं तो आप नहीं करते।
समाधानः- अन्दर पक्का हो तो ही बोल सकते हैं, नहीं तो बोले ही नहीं।
मुमुक्षुः- आपकी प्रकृति तो एकदम नहीं बोलनेकी प्रकृति है।
समाधानः- जो भी हो, अपने आत्माके प्रयोजनसे यहाँ आये हो तो बिना विचार किये क्या बोलना?