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मुमुक्षुः- समय आ गया है, वह डायरी प्रकाशित करो तो अच्छा।
समाधानः- सब संक्षेपमें कह दिया।
मुमुक्षुः- अब तो समय आ गया है। आपने कहा था न, द्रव्य-क्षेत्र-काल- भाव देखकर करेंगे।
समाधानः- काल क्या है? माहोल कैसा हो गया है?
मुमुक्षुः- यहाँका माहोल तो बहुत अच्छा हो गया है। सब शान्त हो जाता है।
समाधानः- गुरुदेवने जाहिर कर दिया है। जो-जो कहने जैसा था, वह सब गुरुदेव सबको कहते ही थे।
मुमुक्षुः- गुरुदेव ऐसा फरमाते थे कि मेरी थोडी-थोडी बात करे और उनकी कोई बात नहीं करते, ऐसा गुरुदेव कहते थे।
समाधानः- अपने लिये क्या कहना? अपने तो गुरुदेवकी प्रभावना... गुरुदेव महापुरुष हैं, उनको कहनी रहती है, मैं क्या बोलूँ?
मुमुक्षुः- वहाँ समवसरणमें मुनिओंका समूह हो और ऐसी भावना हो, भाते हो, ऐसा होता है... ऐसा कुछ।
मुमुक्षुः- गुरुदेव यह कहते थे कि जो कहते हैं, वह तो बहुत थोडा कहते हैं, अन्दर तो बहुत है।
समाधानः- पोंइन्ट-पोंइन्ट गुरुदेव कहते थे। .. तब समवसरणमें पधारे थे। समवसरण होता है.. आदि।
मुमुक्षुः- नारणभाई गुरुदेवको एक बार सुबह कहते थे, कि हम लोग मुनिओंके साथ, कुन्दकुन्दाचार्यके साथ चर्चा करते थे। उस वक्त हम चारों ओर खडे थे।
समाधानः- कुन्दकुन्दाचार्य पधारे...