कुन्दकुन्दाचार्यके विषयमें मुझे ज्यादा कुछ मालूम नहीं था, वह भी सब ऐसे ही आया था। थोडा मालूम था कि महाविदेहक्षेत्रमें (गये थे), उसके बारेमें भी कुछ ज्यादा मालूम नहीं था। प्रारंभमें (संवत) १९९३-९४के वर्षमें कुछ ज्यादा मालूम नहीं था। ज्यादा तो बादमें मालूम हुआ। कुछ मालूम नहीं था। परन्तु यह सब बात गुरुदेव संप्रदायमें थे उस वक्त बाहरमें कुछ बोलते भी नहीं थे। फिर संप्रदाय (संवत) १९९१में छोडनेके बाद तुरन्त कुछ नहीं बोले। उन्होंने उस वक्त स्वयंने कोई मेल नहीं किया। राजकुमारका स्वप्न आया, ऐसा बोलते भी नहीं थे। लेकिन उनको चन्द्रमाके ज्यादा स्वप्न आते थे तो उनको ऐसा लगता था कि में चन्द्रमेंसे आया हूँ? उनको चन्द्रके बहुत स्वप्न आते थे। लेकिन यह कहा इसलिये उन्होंने वह स्वप्न याद किया कि मुझे राजकुमारका स्वप्न आया है कि मैं राजकुमार हूँ। लेकिन इस भरतक्षेत्रका राजकुमार नहीं। शरीर बडा था, ऐसा बोलते थे। मैंने कहा न। दोपहरको कहा, शरीर अलग प्रकारका था। अभीका शरीर नहीं, ऐसा वे बोलते थे। इस क्षेत्रका शरीर नहीं, ऐसा बोलते थे। झरीके वस्त्र, पघडी बाँधी थी, ऐसा स्वप्न आया था उनको। झरीका ऐसा, बोलते थे। किसीने नहीं सुना था, मैंने तो कहाँ सुना होगा? दूसरे किसी भक्तने भी नहीं सुना था।
मुमुक्षुः- उन्होंने कहा ही नहीं था। उत्तरः- कहा ही नहीं था, इसलिये कैसे (मालूम पडे)? .... चन्द्र, चन्द्र, चन्द्र, चतुर्थीका, पंचमीका चन्द्रमा ही दिखता था। (ऐसा स्वप्न आता था कि), पूरे आकाशमें पाटिये। वह तो उन्हें बहुत आता था। शास्त्रका पाटिया। लेकिन यह चन्द्रके बहुत (आते थे)। लेकिन वह तो प्रभावना सम्बन्धित चन्द्रके स्वप्न आते थे। चन्द्रके स्वप्न बहुत आते थे। चन्द्रमा ज्योतिषी देवमेंसे आया हूँ? ऐसा हो जाता था। चन्द्रमाके स्वप्न बहुत आते थे।
मैं तीर्थंकरका जीव ही हूँ, तीर्थंकर हूँ, ऐसा उनको अंतरमेंसे आता ही रहता था। किसीको मालूम नहीं था उनको ऐसा आता है। (त्रिलोकीनाथने) टीका लगाया, अब तुझे क्या चाहिये? ऐसा बोलते थे। "लहि भव्यता मोटुं मान'। त्रिलोकीनाथने टीका लगाया, और क्या चाहिये? प्रवचनमें अलग प्रकारसे बात आये, इसलिये पकडमें आ