Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-६)

२३२ ही आया है। सीमंधर भगवान आदि।

.. इतना क्षेत्र ऊपर, नीचे जो उसका हो, उस अनुसार प्रत्यक्ष दिखता है। उनके क्षेत्रमें रहकर उपयोग रखकर देखे तो सब प्रत्यक्ष देखते हो। जैसे नजदीक-से देखते हैं, वैसे प्रत्यक्ष दूर-से दिखता है।

.. उस अनुसार स्वप्न आये, कुछ दूसरा आये, कोई स्वप्न यथातथ्य हो, कोई स्वप्न संस्कारके कारण आये। भूतकालके जो संस्कार हो कि गुरुदेव पधारते हैं और गुरुदेव प्रवचन करते हैं, वह सब संस्कार होते हैं। कोई स्वप्नमें यथातथ्य स्वप्न भी हो और कोई संस्कारके कारण आये। अन्दर जो रटन हो उस अनुसार आते रहते हैं।

मुमुक्षुः- यथातथ्य भी कोई आये।

समाधानः- हाँ, यथातथ्य स्वप्न भी आवे। ... यथातथ्य है या भावनाका है, क्या है? माताको स्वप्न आते हैं, सोलह स्वप्न। वह सब आगाही लेकर आते हैं।

मुमुक्षुः- यथातथ्य।

समाधानः- यथातथ्य स्वप्न आता है। .. कोई देव आते भी हैं, परन्तु दूसरेको दिखे भी नहीं। प्रसंग पडे, कोई मन्दिरके दर्शन हेतु या कोई प्रतिमाका उत्सव, कोई देव आते भी है, परन्तु आवे ही ऐसा नहीं। आते हैं, देव नहीं आते हैं ऐसा नहीं है।

... जो अपनी भूल है वह भूल है। स्व-परकी एकत्वबुद्धि ही बडी भूल है। परपदार्थको अपना मानना और अपनेको अन्य मानना। स्वयं अन्यरूप एकत्व हो जाय और अन्यको अपना मानता है, वह एकत्वबुद्धिकी बडी भूल है। विभावस्वभाव अपना नहीं है, उसे अपना मानता है वह उसकी बडी भूल है। बडी भूल वही है। एकत्वबुद्धिकी भूल है। फिर विचारमें द्रव्य-गुण-पर्यायकी (भूल हो)। वह निर्णय करनेमें भूल करता हो, अपने विचारमें, निर्णयमें भूल करे। बाकी एकत्वबुद्धिकी भूल अनादिकी चली आ रही है।

सम्यग्दर्शनका विषय तो एक द्रव्यको ग्रहण करना उसका विषय है। चैतन्य पदार्थ अनादिअनन्त शाश्वत द्रव्य है उसे ग्रहण करना। उसमें कोई अपेक्षा (नहीं है)। स्वतःसिद्ध द्रव्य है। उसमें कोई अपूर्णकी, पूर्णकी कोई अपेक्षा नहीं है। वह अनादिअनन्त शाश्वत द्रव्य है। उस द्रव्यको ग्रहण करना। फिर पर्यायमें अल्पता है उसे ज्ञानमें जानना है कि पर्यायमें अधूरापन है, अभी विभाव है। भेदज्ञान करके पूर्णता करनी अभी बाकी रहती है, लीनता बाकी रहती है। वह सब ज्ञानमें जानना। ज्ञान यथार्थ करना। दृष्टमें एक द्रव्यको ग्रहण करना। दृष्टिका विषय एक द्रव्य है। और ज्ञानमें सब ज्ञात होता है। निश्चय- व्यवहार सब ज्ञानमें ज्ञात होता है।

ज्ञान एवं दर्शन साथमें ही होते हैं। जिसे दर्शन सम्यक हो, उसका ज्ञान भी सम्यक