Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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होता है। यथार्थ द्रव्यको ग्रहण किया तो ज्ञानमें द्रव्य और पर्याय दोनों ज्ञानमें ग्रहण होते हैं। दर्शन एवं ज्ञान साथमें ही होते हैं। इसलिये विषय तो एक चैतन्यको ग्रहण करनेका है। ज्ञान सब करता है। परन्तु सम्यग्दर्शन प्राप्त करने हेतु भेदज्ञान करे वह एक ही उसका उपाय है। और उसके लिये स्वयं तैयारी (करे)। चैतन्य कोई अपूर्व वस्तु है, कोई अनुपम है। उसकी महिमा आये, उसकी लगन लगे, बारंबार उसीका अभ्यास करे, वही उसका उपाय है।

उसे एकत्वबुद्धि टूटकर भेदज्ञान हो। द्रव्यकी दृष्टि, द्रव्य पर दृष्टि (करे)। स्वसे एकत्व और परसे विभक्त। विभाव-से विभक्त होना और अपनेमें एकत्व होना। वह उसका उपाय है, दूसरा कोई नहीं है। ऐसी भेदज्ञानकी धारा प्रगट हो, मैं ज्ञायक हूँ। उसे याद नहीं करना पडता, ऐसी सहज ज्ञायकधारा, सहज ज्ञाताकी धारा-ज्ञायकधारा प्रगट हो तो उसमें विकल्प छूटकर निर्विकल्प दशा हो। वह उसका उपाय है। परन्तु उसके लिये बारंबार उसका अभ्यास करना चाहिये। चैतन्यका द्रव्य, गुण, पर्याय क्या है? वह शाश्वत द्रव्य कैसे हो? उसकी पर्याय क्या है? वह सब नक्की करके बारंबार अभ्यास करे कि मैं भिन्न ही हूँ। ये शरीर मैं नहीं हूँ, ये विभाव मेरा स्वभाव नहीं है। विभावकी परिणति होती है, परन्तु उससे भिन्न मेरा स्वभाव है। उससे भिन्न पडनेका प्रयत्न करे कि मैं ज्ञायक हूँ। वह एक ही उपाय है। ज्ञाताधारा प्रगट करनी, वह एक ही उपाय है।

मुमुक्षुः- ज्ञाताधारा द्रव्यके आश्रय-से प्रगट होती है। तो आश्रयका क्या अर्थ बताना चाहते हो?

समाधानः- आश्रय अर्थात अपना अस्तित्व, चैतन्यका अस्तित्व ग्रहण करना कि यह मैं हूँ और यह मैं नहीं हूँ। अपना अस्तित्व ग्रहण करके उसमें स्थिर खडा रहता है कि मैं यही हूँ। अन्य कुछ मैं नहीं हूँ। इस तरह उसकी दृष्टि विभाव तरफ-से उठाकर ज्ञायकका जो अस्तित्व चैतन्य जो है, वह मैं हूँ। इसप्रकार अपने ज्ञानस्वभावको ग्रहण कर ले। ये विभावके साथ जो ज्ञान है, वह विभावमिश्रित ज्ञान नहीं, परन्तु अकेला जो ज्ञान है, वह ज्ञानस्वरूप ही मैं हूँ। वह ज्ञान ज्ञायकके आधार-से है। वह गुण है परन्तु वह गुण ज्ञायकके आधार-से है। इसलिये द्रव्यको ग्रहण करे। ज्ञानलक्षण द्वारा लक्ष्यको ग्रहण करे। द्रव्यको ग्रहण करे कि ये ज्ञान, ज्ञान-से भरा जो द्रव्य है वही मैं हूँ। इसप्रकार अपने अस्तित्वको ग्रहण करे। उसमें दृष्टिको स्थापित करे और उसमें लीनता करे। उसका आलम्बन वह द्रव्य है, अन्य कोई आलम्बन नहीं है।

भगवानने, गुरुदेवने एक ही उपाय (बताया है)। जो मोक्ष गये, वे इस एक ही उपाय-से गये हैं। दूसरा कोई उसका उपाय नहीं है। चैतन्यका आश्रय ग्रहण करे। बाहर