२३६ चैतन्य है, उस चैतन्यको ग्रहण करना।
जो अन्दर मैं, मैं हो रहा है, विकल्परूप नहीं, परन्तु वह जो ज्ञानका अस्तित्व है, जो सबको जाननेवाला है, जो अनन्त काल गया अथवा स्वयं छोटे-से बडा हुआ, वह सब भाव तो चले गये, परन्तु उसको जाननेवाला तो वैसा ही है। धारावाही जाननेवाला है। छोटा था, फिर क्या हुआ, जो विचार आये, गये, उन सबको जाननेवाला तो धारावाही ऐसा ही है। उस जाननेवालेका जो अस्तित्व है वह मैं हूँ। जाननेवाला मैं हूँ। बाहरका जाना इसलिये जाननेवाला हूँ, ऐसा नहीं, परन्तु मैं जाननेवाला स्वयं जाननेवाला ही हूँ। जाननेवालेका अस्तित्व ग्रहण करना।
.. आश्रय-से होती है, परन्तु पर्याय जितना द्रव्य नहीं है। पर्याय क्षणिक है, अंश है। और द्रव्य है सो तो अंशी है। अनन्त पर्यायरूप द्रव्य परिणमता है और पर्याय तो पलटती रहती है। और द्रव्य तो अनादिअनन्त एकसरीखा है। अतः अंश जितना द्रव्य नहीं है। द्रव्य तो पूरा अंशी अनादिअनन्त अनन्त-अनन्त स्वभाव-से भरा है। अनन्त स्वभाव-से भरा है।
मुमुक्षुः- अनन्त गुण जो कहनेमें आता है, वह क्या है?
समाधानः- अनन्त गुण कहो, अनन्त स्वभाव कहो, वह सब एक है।
मुमुक्षुः- द्रव्य निष्क्रिय कैसे है?
समाधानः- द्रव्य निष्क्रिय अर्थात पारिणामिकभावकी अपेक्षा-से वह क्रियावान है। उसमें परिणति होती है। प्रत्येक गुणोंकी पर्याय (होती है)। ज्ञानका कार्य ज्ञानरूप आये, आनन्दका कार्य आनन्दरूप आता है। प्रत्येक गुणका कार्य उसमें आते ही रहता है। केवलज्ञानीको केवलज्ञान होता है, लोकालोकको जाने वह सब ज्ञानका कार्य आता है। केवलज्ञानी आनन्दरूप परिणमते हैं, आनन्दका कार्य आवे। उस अपेक्षा-से द्रव्य सक्रिय है। परन्तु वह क्रिया ऐसी नहीं है कि वह द्रव्य सर्व प्रकार-से क्रियात्मक है।
स्वयं अनादिअनन्त निष्क्रिय है। स्वयं अपनी अपेक्षा-से द्रव्य निष्क्रिय है। मर्यादामें उसकी क्रियाएँ होती है। अपना द्रव्य पलट जाय ऐसी क्रिया उसमें नहीं होती है। अपना स्वभाव रखकर वह क्रिया उसमें होती है। उस अपेक्षा-से द्रव्य निष्क्रिय है। पर्याय अपेक्षा- से सक्रिय है और द्रव्य अपेक्षा-से निष्क्रिय है। सर्वथा निष्क्रिय नहीं है।
मुमुक्षुः- वहाँ द्रव्य अकेला ध्रुव लेना?
समाधानः- हाँ, अकेला ध्रुव द्रव्य। द्रव्य एकसरीखा रहता है।
मुमुक्षुः- जो दृष्टिका विषय बनता है वह?
समाधानः- हाँ, जो दृष्टिका विषय बनता है, वह द्रव्य एकसरीखा निष्क्रिय रहता है। जिसमें कोई फेरफार नहीं होते। अनादिअनन्त एकरूप रहता है। अपना नाश नहीं