२७६
होता, ऐसा अनादिअनन्त निष्क्रिय द्रव्य है। परन्तु द्रव्य अपेक्षा-से निष्क्रिय, पर्याय अपेक्षा- से सक्रिय है। यदि निष्क्रिय हो तो केवलज्ञानकी पर्याय नहीं हो, आनन्दकी पर्याय नहीं हो, उसमें साधक दशा नहीं हो, मुनि दशा नहीं हो। यदि कोई क्रिया होती ही न हो तो (कोई दशा ही नहीं हो)। पर्याय अपेक्षा-से सक्रिय और द्रव्य अपेक्षा-से निष्क्रिय है।
.. द्रव्य शून्य नहीं है। जागृतिवाला है और कार्यवाला है। द्रव्य अपेक्षा-से निष्क्रिय। अपना स्वभाव उसमें रहता है। ऐसा नित्यरूप ध्रुव रहता है, वह निष्क्रिय है। पर्याय अपेक्षा-से कार्यवाला है।
.. तो उसे ज्ञान कैसे कहें? आनन्द आनन्दरूप कार्य न लावे तो वह आनन्दका गुण कैसे कहें? ज्ञानका जाननेका कार्य यदि ज्ञान न करे तो उसे ज्ञान कैसे कहें? आनन्द आनन्दका कार्य, शान्ति शान्तिका कार्य न करे तो वह शान्ति और आनन्दका लक्षण कैसे कहें? यदि किसी भी प्रकारकी क्रिया ही नहीं होती हो द्रव्यमें तो जाननेका कार्य भी न हो और शान्तिका कार्य भी न हो और पुरुषार्थ पलटनेका कार्य न हो, तो कोई कार्य ही न हो, सर्वथा निष्क्रिय हो तो।
दो पारिणामिक भाव नहीं है, पारिणामिकभाव तो एक ही है। पारिणामिकभाव अनादिअनन्त द्रव्यरूप जैसा है वैसा, एकरुप ध्रुवरूप द्रव्य रहता है, वह पारिणामिकभावरूप, अपने स्वभावरूप पारिणामिकभाव रहता है। वह पारिणामिकभाव है। और पर्यायमें जिसमें उपशम या क्षायिक ऐसी अपेक्षा लागू नहीं पडती, इसलिये वह पर्यायरूप ऐसा कहनेमें आता है। .. अपेक्षा-से और पर्याय भी पारिणामिकभावकी अपेक्षा-से। ध्रुवरूप एकसरीखा रहता है, इसलिये परमपारिणामिकभाव। और पर्याय भी पारिणामिकभावरूप है। जिसमें उपशम, क्षयोपशम, क्षायिक ऐसी अपेक्षा लागू नहीं पडती। इसलिये उसे ऐसी पर्याय कहनेमें आती है।
मुमुक्षुः- .... भूमिका किसे कहते हैं?
समाधानः- स्वभावकी लगन अन्दर लगनी चाहिये कि मुझे स्वभाव चाहिये, दूसरा कुछ नहीं चाहिये। उसके लिये उसकी धून, लगनी, विचार, वांचन, उसकी महिमा लगे, बाहर सब रस ऊतर जाय, बाहरमें जो तीव्रता हो वह सब मन्द पड जाय। बाहरका लौकिक रस उसे मन्द पड जाय। एक अलौकिक दशा प्राप्त (हो)। अलौकिक महिमारूप आत्मा है। लौकिक कार्यका रस उसे मन्द पड जाय। उसमें खडा हो, लेकिन सब मन्द पड जाता है। उसका रस, विभावका सर्व प्रकारका रस उसे मन्द पड जाता है।
शुभभावमें उसे देव-गुरु-शास्त्र होते हैं और शुद्धात्मामें एक आत्मा। शुद्धात्मा कैसे प्राप्त हो? जो भगवानने प्राप्त किया, जो गुरुदेवने साधना की और जो शास्त्रमें आता है, उस पर उसे भक्ति आती है। शुभभावमें वह होता है और अंतरमें शुद्धात्मा कैसे