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अन्दरमें-से पलटे बिना नहीं रहता। वैसे गहरे संस्कार डाले तो वह पलटे बिना नहीं रहता।
मुमुक्षुः- वहाँ फिर कालका कोई कारण नहीं रहता। कभी भी हो। किसकी जल्दी हो, किसीको विलंब हो, परन्तु होता जरूर है।
समाधानः- होता जरूर है।
मुमुक्षुः- उसमें ज्यादा-से ज्यादा अमुक काल लगता है, ऐसा है?
समाधानः- जिसे रुचि हुयी, गहरी रुचि हुयी, उसे कालका माप नहीं है। लेकिन उसका काल मर्यादित हो जाता है, उसे अनन्त काल तो नहीं लगता। उसे मर्यादामें आ जाता है। गहरे संस्कार हो तो आ जाता है।
मुमुक्षुः- भूल होती हो तो हमें किसके पास हमारी भूल पकडवाने जाना, यह समझमें नहीं आता।
समाधानः- गुरुदेवने तो स्पष्ट करके बताया है, करनेका स्वयंको बाकी रह जाता है।
मुमुक्षुः- क्योंकि ज्ञानीके बिना ज्ञान गम्य नहीं है। ज्ञानियोंकी भेंट हुयी, तीर्थंकरकी हुयी तो भी ये परिस्थिति क्यों रह गयी?
समाधानः- स्वयंने ज्ञानीको, गुरुको पहिचाना नहीं है। सब मिले, भगवानको पहचाना नहीं। स्वयंने बाहर-से पहचाना है। अंतर कोई अपूर्व रीत-से ये अलग है, कुछ अलग कहते हैं, उस प्रकार-से पीछाना नहीं।
ये तो पंचम कालमें गुरुदेव पधारे और कुछ अलग प्रकार-से बात कही, इसलिये सबको ख्याल आया कि ये कुछ अलग कहते हैं। बाकी स्वयंने स्थूल दृष्टि-से हर बार पहचाना है। भगवान समवसरणमें बैठे हो, भगवानकी वाणी (छूटती है), भगवानके ये अतिशय है, भगवानके पास इन्द्र आते हैं, ऐसे बाहर-से सब ग्रहण किया है। भगवानका आत्मा क्या है और वे क्या कहते हैं? वह कुछ ग्रहण नहीं किया।
मुमुक्षुः- बाह्य विभूति देखनेमें अटक गया।
समाधानः- बाह्य विभूति देखी।
समाधानः- मनुष्योंमें ऐसी शक्ति नहीं होती, देवमें तो सब शक्ति है, सब क्षेत्रमें जानेकी। देवमें भी वही करते हैं। भगवानके पास जाते हैं। हर जगह जा सकता है। गुरुदेव भगवान-भगवान करते थे। साक्षात भगवानके पास जा सके, समवसरणमें दिव्यध्वनि सुनने। वहाँ शाश्वत मन्दिर हैं, स्वर्गमें मन्दिरोंमें पूजा, धर्म चर्चा आदि सब होता है, देवलोकमें स्वाध्यायादि सब होता है। यहाँ गुरुदेव आजीवन कोई महापुरुष बनकर रहे, वहाँ देवमें भी वही करते हैं। क्षेत्र-से दूर हुए हैं, बाकी गुरुदेव तो विराजते हैं स्वर्गमें। यहाँ बहुत साल विराजे हैं।