Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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राग होता है।

परन्तु भेदज्ञान हो तो अल्प अस्थिरता रहती है। परन्तु वह समझता है कि मेरी अस्थिरताके कारण है। वास्तविक रूप-से कोई इष्ट नहीं है, कोई अनिष्ट नहीं है। वह सब तो परपदार्थ है। इसलिये वह स्वयं पुरुषार्थकी मन्दताके कारण गृहस्थाश्रममें खडे हो, तो भी अस्थिरताको जाने कि ये सब मेरी मन्दताके कारण होता है। वास्तविक कोई इष्ट नहीं है, कोई अनिष्ट नहीं है। उसे भेदज्ञान वर्तता है।

मिथ्यात्वमें जो राग-द्वेष होते हैं, वह उसे एकत्वबुद्धिरूप (होते हैं कि) ये मुझे ठीक है और ठीक नहीं है, ठीक है, ठीक नहीं है। वह स्वयं राग ही उस जातका ग्रहण कर लेता है। कोई निमित्त मुझे ठीक है, अठीक है। उसके मिथ्यात्वके कारण, ऐसी बुद्धि-एकत्वबुद्धिके कारण ऐसा चलता ही रहता है।

उसकी एकत्वबुद्धि टूटे कि वास्तविक कोई इष्ट-अनिष्ट है ही नहीं, मैं चैतन्य भिन्न ज्ञायक हूँ। ये कोई अच्छा नहीं है, बूरा नहीं है। मात्र अपनी कल्पना-से ऐसी बुद्धि होती रहती है। मैं उससे भिन्न हूँ। इसप्रकार भिन्न होनेका प्रयत्न करे। फिर अल्प राग रहता है वह उसके पुरुषार्थकी मन्दताके कारण। एकताबुद्धिको तोडनेका प्रयत्न करे। बाहर उसे कुछ नहीं हो तो स्वयं ही अन्दर ऐसे विकल्प उत्पन्न करता है, एकत्वबुद्धिके कारण।

मुमुक्षुः- सत्य बात है, अपनेआप उत्पन्न होते रहते हैं। परपदार्थ हो भी नहीं, तो भी (उत्पन्न होते हैं)।

समाधानः- स्वयं ही अन्दर-से उत्पन्न होते रहते हैं।

मुमुक्षुः- .... उस वक्त विभावरूप क्यों परिणमता है?

समाधानः- ज्ञप्तिक्रिया, परन्तु वह ज्ञप्तिक्रिया यथार्थरूप कहाँ है? ज्ञप्ति ज्ञप्तिरूप स्वयं रहता नहीं। करोति क्रिया हो जाती है। मैं ये सब करता हूँ और मुझसे ये सब होता है। ज्ञायकरूप रहे तो ज्ञप्तिक्रिया बराबर कहें। परन्तु वह ज्ञप्तिक्रिया कहीं स्वयंको जानता नहीं है। स्वयंको जानता हो, स्वको जाननेपूर्वक पर जाने तो वह बराबर हो। परन्तु स्वको नहीं जानता है और ये पर स्थूलरूप-से जानता है। जो स्वको नहीं जानता, वह दूसरोंको यथार्थ नहीं जानता। इसलिये ज्ञप्तिक्रिया होती है, परन्तु वह ज्ञप्तिक्रिया भी उसे करोतिक्रिया है। वह साक्षी नहीं रहता है। मानों मैं उसको कर देता हूँ, इसके कारण ऐसा होता है। जानना अर्थात वह स्थूलरूप-से जानता है। वह यथार्थ नहीं जानता है।

स्वको जाने तो ही उसने यथार्थ जाना कहनेमें आये। स्वको जाने बिना जानना वह यथार्थ नहीं जानता। स्वको छोडकर सबको जाने वह कुछ जानना नहीं है। स्वपूर्वक