ट्रेक-
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भेदज्ञान प्रगट होनेके बाद। परन्तु पहले-से एक ही उपाय है, भेदज्ञानका अभ्यास करना।
भेदविज्ञानतः सिद्धाः सिद्धा ये किल केचन। भेदज्ञानका अभ्यास। मैं चैतन्य शाश्वत द्रव्य हूँ। शुद्धात्मा चैतन्य हूँ। ये विभाव मेरा स्वभाव नहीं है। उससे भिन्न पडनेका प्रयत्न करे। उसकी महिमा, उसकी लगनी, बारंबार उसका विचार, एकाग्रता (करे)। उसमें बारंबार स्थिर न हुआ जाय तबतक बाहर श्रुतका अभ्यास करे, देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा करे। परन्तु बार-बार करनेका एक ही ध्येय-ज्ञायकको ग्रहण करना वह।
प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो! माताजीनी अमृत वाणीनो जय हो!