Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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PDF/HTML Page 1843 of 1906

 

ट्रेक-

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२६३

उपशांत।

जिसे सम्यग्दर्शन है, जो छठवें-सातवें गुणस्थानमें झुलते हैं, वास्तविक भावलिंगीकी दशा है, उस वक्त भले उपशांत श्रेणि हुयी, परन्तु वह तो केवल लेनेवाले हैं, अवश्य। भले एक बार उपशम श्रेणि हो गयी, बादमें भी कोई बार क्षपकश्रेणि चढकर केवलज्ञान अवश्य उसे होनेवाला है। छठवें-सातवें गुणस्थानमें भावलिंगी मुनिदशा है तो क्षपकश्रेणी तो होती है। उस भवमें या दूसरे भवमें क्षपण श्रेणी तो होती है। जिसको भावलिंगीकी दशा है, भीतरमें मुनिदशा है, छठवें-सातवेंमें स्वानुभूति अंतर्मुहूर्त-अंतर्मुहूर्तमें जाते हैं, अंतर्मुहूर्तमें बाहर आते हैं, ऐसी स्वानुभूतिकी दशा प्रगट हो गयी। उसको अवश्य केवलज्ञान होनेवाला है। जिसको सम्यग्दर्शन हुआ, उसको भी अवश्य केवलज्ञान होनेवाला है। और मुनिदशा यथार्थ हुयी उसको भी अवश्य केवलज्ञान होनेवाला है। वीतराग दशा होनेवाली है। उसका ऐसा पुरुषार्थ अवश्य-अवश्य प्रगट होता है। उसकी परिणतिकी दशा स्वरूप ओर चली गयी है, ज्ञायककी धारा है और वह तो मुनिदशा है, स्वरूपमें लीनता बहुत बढ गयी है। अवश्य वीतराग दशा होती है, केवलज्ञान होता है।

मुमुक्षुः- मुख्यपने तो क्षपकश्रेणी ही होती है न? उपशम श्रेणी तो कोई-कोईको होती है।

समाधानः- हाँ, कोई-कोईको होती है।

मुमुक्षुः- .. ज्ञायक हूँ, ऐसा खण्ड पडता है। कर्ता-हर्ता नहीं है, मैं तो स्वयंसिद्ध अपने-से ही हूँ।

समाधानः- मैं ज्ञाता हूँ, दृष्टा हूँ ये सब गुणोंका भेद पडता है।

मुमुक्षुः- विकल्प आ जाता है।

समाधानः- विकल्प गुणोंका भेद है। परन्तु दृष्टि तो जो ज्ञायक हूँ सो हूँ, मेरा अस्तित्व, ज्ञायकका अस्तित्व ग्रहण कर लिया है, बस। फिर वह तो जाननेके लिये है कि मैं ज्ञान हूँ, दर्शन हूँ, चारित्र हूँ, ये सब विकल्प है। विकल्पकी दशा जबतक निर्विकल्प दशा पूर्ण नहीं है, तबतक विकल्पकी दशा तो है, परन्तु दृष्टि चैतन्य पर स्थापित है। उसकी दृष्टि अखण्ड रहती है। सम्यग्दृष्टिकी दृष्टि चैतन्य पर जमी है।

मुमुक्षुः- ...

समाधानः- फिर लीनता होती है। स्थिरता बादमें होती है। पहले यथार्थ दृष्टि होवे, भेदज्ञानकी धारा होवे, मैं ज्ञायक ज्ञायक हूँ। उसमें स्वानुभूति होवे सम्यग्दर्शनमें, विशेष लीनता बादमें होती है।

जिज्ञासुको तो पहले दृष्टि यथार्थ करनी चाहिये। मैं चैतन्य ज्ञायक ही हूँ। जो हूँ सो हूँ। विकल्पका भेद वह मैं नहीं हूँ। निर्विकल्प तत्त्व मैं हूँ। ऐसा उसका निर्णय