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जब पधारेंगे तब। अमुक ज्ञान आदि जो अभी नहीं है, वह सब उस वक्त प्रगट होगा। मुनि, श्रावक, श्राविका सब। भगवान भरतक्षेत्रमें पधारेंगे तब। अभी पंचमकाल (चल रहा है), छठ्ठा काल आयेगा, फिर महापद्मप्रभु भगवान पधारनेवाले होंगे तब इस भरतक्षेत्रकी दिशा पूरी बदल जायेगी।
... यहाँ दिशा पलटकर गये हैं। सब क्रियामें धर्म मानते थे। गुरुदेवने पूरी दिशा बदल दी। सबको अंतर दृष्टि करवाकर सबको मुक्तिके मार्ग पर चढा दिया। गुरुदेव तीर्थंकरका द्रव्य था। उन्होंने तीर्थंकर जैसा काम इस पंचमकालके भाग्य-से कर गये।
मुमुक्षुः- .. कितनी करुणा थी और फिर वह राग एकदम कैसे (छूट गया)?
समाधानः- वहा राग उनका एकत्वबुद्धिका नहीं था। करुणा-कृपा थी कि ये सब जीव आत्माका स्वरूप समझे। बार-बार कहते थे, समझो, समझो। उन्हें सबको समझानेकी करुणा थी। निस्पृह और एकदम विरक्त थे। उन्हें एकत्वबुद्धि थी नहीं। समाजका प्रतिबंध हो तो वे ऐसा कहते थे, मैं पूरा समाज छोडकर अकेला चला जाऊँगा। ऐसी उनकी निस्पृह परिणति थी।
स्थानकवासीमें कहते थे न, संप्रदाय छोड दूँगा। मैं कहीं संप्रदायके बन्धनमें रहनेवाला नहीं हूँ। उन पर कोई प्रतिबन्ध करे तो (चलता नहीं था)। गुरुदेव तो अप्रतिबन्ध थे। उन पर किसीका प्रतिबन्ध नहीं था। वात्सल्य-करुणा थी सब जीवों पर। सब जीव कैसे समझे?
मुमुक्षुः- अभी सूर्यकीर्तिनाथ भगवानको जिनालयमें पूजनेकी भावना हुयी। उसके फलमें साक्षात पूजनेका लाभ समवसरणमें मिलेगा।
समाधानः- मिल जायगा। भावना अभी-से तैयार हो तो साक्षात लाभ मिल जाय। यहाँ समीप लाकर भगवानके रूपमें पूजते हैं। जो कालकी बात है, कालकी समीप स्थापना करके पूजा करते हैं। गुरुदेव साक्षात भगवान होंगे तब दूसरी बार लाभ मिलेगा।
मुमुक्षुः- अभी भावका अंतर टूटा, उस वक्त कालका टूटेगा।
समाधानः- हाँ। दूसरी बार समवसरणमें सान्निध्यमें दिव्यध्वनि सुननेका योग मिलेगा। अभी उनकी वाणी सुननेका योग तो था ही। सीमंधर भगवानकी जैसे अमुक कालमें वाणी छूटती है, वैसे गुरुदेवकी वाणी छूटती ही रहती थी। नियम अनुसार। महापद्म प्रभु भगवान यहाँ प्रथम तीर्थंकर होंगे। बीचमें इस पंचमकालमें ऐसा अच्छा काल आ गया। गुरुदेव पधारे वह (काल आ गया)।
मुमुक्षुः- गुरुदेव ..
समाधानः- कोई आश्चर्य है इस पंचमकालमें ऐसे पुरुष पंचमकालमें जागे, वह