२७६ एक अचंभा आश्चर्य है। इस पंचमकालमें ऐसे तीर्थंकर भगवानका द्रव्य यहाँ आये और ऐसी वाणी बरसाये, वह कोई आश्चर्यकी बात है। विदेहक्षेत्रमें भगवानकी ध्वनि सुननेवाले, जो भविष्यमें तीर्थंकर होनेवाले हैं, और ऐसे हुंडावसर्पिणी पंचमकालमें यहाँ गुरुदेव पधारे, एक अचंभा, आश्चर्यकी बात है। जीवोंका महाभाग्य कि यहाँ पधारे।
ऐसी उनकी वाणी, ऐसा उनका श्रुतज्ञान वह एक महाअचंभा, आश्चर्यकी बात है इस पंचमकालमें। बहुत मुनि होते हैं, परन्तु गुरुदेव तीर्थंकर स्वरूपमें पूरे समाजके बीच रहकर ऐसी वाणी इतने साल बरसायी, वह तो कितने समय बाद महाभाग्य-से बनता है। मुनिओं तो जंगलमें (हों या नगरमें) आये तब वाणी बरसाये। ये तो समाजके बीच रहकर ऐसी वाणी बरसायी। ये तो कोई आश्चर्यकी बात है। भरतक्षेत्रमें आये। भरतक्षेत्रका महाभाग्य कि गुरुदेव यहाँ पधारे।
मुमुक्षुः- गणधर आदि मुनि भगवंत आदि हो, देशनाका काल न हो तो ऐसे कालमें दूसरोंको देशना देते होंगे?
समाधानः- वहाँ होता है। मुनिओंके साथ
प्रश्न-चर्चा करे। ऐसा सब करे। जब देशनाका काल नहीं हो तब। .. चारों (संघ) आवे ऐसा नहीं होता। जैसे भगवानमें चारों (संघ) आता है, श्रावक, श्राविका, मुनि, आर्जिका दिव्यध्वनि सुननेको इकट्ठे होते हैं, वैसा समय निश्चित होता है, ऐसा दूसरेका होता है, परन्तु अमुक-अमुक लोगोंको उपदेश दे, किसीके साथ चर्चा-प्रश्न करे।
मुमुक्षुः- कुन्दकुन्दाचार्य दूसरे मुनिओंके साथ चर्चा की, तो समवसरणमें या समवसरणके बाहर?
समाधानः- समवसरणमें चर्चा-प्रश्न करनेमें कोई दिक्कत नहीं है। चर्चा-प्रश्न करे। भगवानकी ध्वनिका काल न हो तब।
मुमुक्षुः- भाषा तो यहाँकी अलग, वहाँकी अलग (होती है तो..)?
समाधानः- भाषा अलग यानी आर्य भाषा होती है। भाषा कोई नवीन जातकी नहीं होती। जो अमुक जातकी भाषा है कि इतनी आर्य भाषा और इतनी अनार्य भाषा, इसलिये आर्य भाषा होती है, ऐसी आर्य भाषा होती है। ये सब भाषा हिन्दी, गुजराती सब आर्य भाषा है। अनार्य भाषा नहीं होती। संस्कृत, मागधी सब शास्त्रिय भाषा है। ये सब बोलनेका भाषा है वह आर्य भाषा है। ऐसी आर्य भाषा (होती है)। महाविदेह क्षेत्रमें सब आर्य भाषा होती है।
भगवानका उपदेश तो अलग ही होता है। दिव्यध्वनि तो एकाक्षरी ध्वनि (होती है)। कोई अलग जातका भगवानका उपदेश है। दूसरेके साथ प्रश्न-चर्चा करे वह भेदवाली भाषा होती है। क्षयोपशम ज्ञानमें-से निकली हुयी भाषा वह भेदवाली भाषा है। बाकी