Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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प्रयत्न रहता है।

मुमुक्षुः- भेदज्ञानकी उग्रता माने क्या?

समाधानः- स्वयं चैतन्य भिन्न ही है, मैं ज्ञायक भिन्न हूँ, ऐसा सहज भेदज्ञान होकर अन्दर लीनता, उग्रताके साथ लीनताका प्रयत्न होता है। विकल्प तरफ जो उपयोग जाता है, परिणति अस्थिर होती है, वह उपयोग अपने स्वरूप तरफलीन हो, उस लीनताका प्रयत्न होना चाहिये।

एक चारित्रदशा-लीनता वह अलग है, परन्तु ये तो अभी एक समझा नहीं है और स्वरूपाचरण चारित्र मात्र है, वह प्रगट होनेके लिये उसे लीनताका प्रयत्न (होता है)। भेदज्ञानपूर्वक लीनताका (प्रयत्न)। अकेली लीनता करे, समझे बिना विकल्प छोडे ऐसे नहीं। अपना अस्तित्व ग्रहण करके भेदज्ञानपूर्वक लीनताका प्रयत्न।

मुमुक्षुः- भेदज्ञानके साथ-साथ लीनता सहज बनती जाती है या प्रयत्न करना पडता है?

समाधानः- जिसे भेदज्ञानकी धारा वर्तती है, उसे साथमें लीनता (होती है)। परन्तु जिसे सच्ची परिणति प्रगट हुयी, उसे लीनता हुये बिना रहती ही नहीं। वह उसमें अटकता नहीं, उसमें आगे जाता है। कितनोंको निर्णय, प्रतीत होनेके बाद अभी भेदज्ञान सहज नहीं होता, तबतक उसे निर्विकल्प दशा होती नहीं। भेदज्ञान सहज परिणमें उसमें लीनता हो तो निर्विकल्प दशा होती है। सच्चे ज्ञानपूर्वक सच्चा ध्यान होना चाहिये तो होता है।

वह ध्यान, जो चारित्रदशाका ध्यान है, फिर पाँचवे, छठ्ठो (होता है), वह ध्यान नहीं है। ये तो अभी सम्यग्दर्शनमें होता है, वह ध्यान। सच्चे ज्ञानपूर्वक सच्चा ध्यान होना चाहिये। उसे भेदज्ञानकी उग्रता कहो, उसे ध्यान कहो, उसे लीनता कहो।

मुमुक्षुः- भेदज्ञानकी उग्रताका ..

समाधानः- ज्ञान तो है, परन्तु वह सहज है। बुद्धिमें मैं भिन्न हूँ, भिन्न हूँ, भिन्न हूँ, ऐसे विकल्पमात्र नहीं, अपना अस्तित्व ग्रहण करता है। और अस्तित्व ग्रहण करे उसे सहज होता है। विकल्पपूर्वक अभ्यास करता है, अभ्यास मात्र ऊपर-ऊपर नहीं, अंतरमें-से सहज अभ्यास, अभ्यासकी परिणति सहजरूप हो जाय और उसकी भेदज्ञानकी धारा सहज हो और सहज लीनता हो। भेदज्ञानकी धाराके साथ उसकी उग्रताके साथ सहज लीनता होती है। दोनों साथ होते हैं। वह उग्रता है वह सम्यग्दर्शनपूर्वक उग्रता है।

.. सहज दशा कहो, सहज होना चाहिये। विकल्पपूर्वक अभ्यास करता है (उतना ही नहीं)। अंतरमें अस्तित्व ग्रहण करके सहजरूप परिणमित हो जाय, सहज भेदज्ञानरूप