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था। आत्मा भिन्न है, भिन्न है, ऐसा ज्यादा-ज्याता भिन्न लगता जाय, इसलिये इतना- इतना ऐसा कहती थी। आत्मा भिन्न है, यह सब भिन्न है, आत्मा भिन्न है। ज्यादा- ज्यादा भिन्नता लगने लगती थी इसलिये इतना है, इतना है, ऐसा कहती थी। ऐसा कुछ मालूम नहीं पडता है कि इतने समयमें हो जायगा। उतना बल अन्दर-से आता था। ये भिन्न है तो भिन्न ही पड जायगा, ऐसा होता था।
मुमुक्षुः- माताजी! निश्चय-व्यवहारकी सन्धि आयी न? आपने कहा, ज्ञायकका रटन करना, देव-गुरु-शास्त्रमें यथार्थ श्रद्धा रखना। वह तो व्यवहार आया। तो निश्चय- व्यवहार दोनोंकी सन्धि साथमें ही है?
समाधानः- दोनों साथमें है। दोनों साथमें है। निमित्त और उपादान। पुरुषार्थ करनेका उपादान अपना और उसमें निमित्त देव-गुरु-शास्त्र होते हैं। वह शुभभाव-से भिन्न होने पर भी निमित्त-उपादानकी सन्धि होती ही है। अनन्त काल-से जो सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं हुआ है, प्रथम बार हो तो उसमें देशनालब्धि होती है। कोई साक्षात गुरु या साक्षात देव हो तभी उसे देशनालब्धि होती है, ऐसा निमित्त-उपादानका सम्बन्ध है। ज्ञायकको ग्रहण करनेका है, तो भी उसमें निमित्त देव-गुरुका होता है। प्रत्यक्ष देव- गुरु हो तो अन्दर-से प्रगट होता है। ऐसा निमित्त-उपादानका सम्बन्ध है। ऐसी निश्चय- व्यवहारकी सन्धि है।
मुमुक्षुः- ज्ञानी धर्मात्मा बाहरमें भक्ति आदि कायामें जुडते हों ऐसा दिखता है, .. ऐसा लगता है। आप कहते हो कि वह बाह्य काया-से अलिप्त है। ज्ञानीकी अन्दरमें जो परिणति चलती है उसे तू देख, परन्तु अन्दरमें देखनेकी दृष्टि तो हमें मिली नहीं है, तो हमें उस दृष्टिको प्राप्त करनेके लिये क्या करना, यह कृपा करके समझाईये।
समाधानः- ज्ञानी कुछ भी करते हो, उसकी भक्ति हो तो भी उसकी भेदज्ञानकी धारामें ज्ञायक भिन्न ही परिणमता है। परन्तु उसे देखनेकी दृष्टि तो स्वयंको प्रगट करनी पडती है। सच्चा मुमुक्षु हो, जिसे सतको ग्रहण करनेका नेत्र खुल गया हो, वह उसके वर्तन पर-से, अमुक (वाणी) पर-से समझ सके। उसे अमुक प्रकार-से समझ सके। बाकी तो अमुक प्रतीत रखे, बाकी उसकी सत ग्रहण करनेकी शक्ति जो सच्चा जिज्ञासु हो उसे प्रगट होती है। ये सब करते हुए भी न्यारे दिखते हैं, ऐसा किसीको ग्रहण हो भी जाता है।
मुमुक्षुः- अर्पणता करनी, ज्ञानी धर्मात्माको पहिचानकर।
समाधानः- पहले अमुक परीक्षा-से नक्की करे। अमुक नक्की करे, फिर सब नक्की करनेकी उसकी शक्ति न हो तो वह अर्पणता करे। अमुक जितनी उसकी शक्ति हो उसे ग्रहण करे। उतना अमुक तो नक्की करे, फिर तो गुरुदेव दृष्टान्त देते थे कि तुझे